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________________ खो दिया। लोग क्या कहते होंगे? तूने कितना ऊटपटांग उत्तर दिया। बहू ने कहा कि मैंने ठीक उत्तर दिया है। चलो महाराज के पास, वे बतलावेंगे, सबको समाधान मिल जायेगा। वे साधु महाराज छोटी उम्र के थे। बहु ने पूछा कि इस छोटी उम्र में आप कैसे आ गये? तो साधु ने कहा कि बेटी! समय की खबर मुझे न थी। आज हैं, कल पता नहीं क्या हो जाये? कितने दिन जीना है? इसलिये सवेरे आ गये अर्थात् शीघ्र साधुपने में आ गये। यह प्रथम प्रश्न का उत्तर हुआ। अब 4 वर्ष की उम्र का क्या मतलब? तो उसने स्वयं कहा कि 4 वर्ष हुए तब से मैं धर्मसाधना मैं आयी। जबसे धर्म की परख हुई, तभी से मैंने अपना जीवन समझा। पति के 4 महिने का अर्थ क्या है कि चार महिने से उनको श्रद्धा हुई। ससुर ने कहा कि हम तो बूढ़े खड़े हैं और मुझे यह बतलाती है कि ससुर पैदा ही नहीं हुये। अब भी ससुर साहब लड़ रहे हैं। पर धर्मदृष्टि से उन्हें पैदा हुआ कैसे कहा जावे, क्योंकि इनके अभी श्रद्धा नहीं हुई? बासी खाने का मतलब क्या था कि पर्वजन्म में जो पण्य किया था, उसकी वजह से आज भोग रहे हैं, पर ताजा कोई पुण्य नहीं कर रहे हैं। पूर्वजन्म का जो बनाया सामान है, उसको खा रहे हैं। इसमें प्रयोजन की बात इतनी जानने की है कि जब से निज आत्मतत्त्व की परख हुई है, तब से समझो कि अपना जीवन है। इससे पहिले का जीवन क्या जीवन है? खाया, पिया, विषय-कषाय किया, अंधेरा-ही-अंधेरा रहा। यह कोई जीवन है क्या? सर्व प्रयत्न करके, आचार्य महाराज बतलाते हैं कि मर करके भी जिसे कहते हैं कि इस काम को करना ही है, जैसा चाहे मरें पचें, तन भी न्यौछावर करें, मन भी न्यौछावर करें, धन इत्यादि सबकुछ त्यागें और सबकुछ न्यौछावर करने के फल में यदि मिल गया आत्मतत्त्व, तो यह नरजन्म सफल है। भैया! शान्ति तो अपने ज्ञानस्वरूप में है। शान्ति के लिए बाहर लाख प्रयत्न किये जायें, कितने ही पुत्र, परिवार, मित्रजन देख डालें, पर शन्ति कहीं नहीं मिलेगी। शान्ति का संबंध परपदार्थों से है ही नहीं। यदि परपदार्थों से शान्ति होती, तो तीर्थंकर आदि बड़े प्रभुत्व, धन-वैभव इत्यादि को क्यों त्याग LU 422 in
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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