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________________ से, समझने भर से, जानने मात्र से इन दोनों की प्राप्ति होती है, तो शरीर की प्राप्ति कर लो या भगवान् स्वरूप की प्राप्ति कर लो। केवल अपने सोचने से ही अपने प्रभु से मिल सकते हैं। यह आत्मा अपने को समझने पर मिलता है, तब इसके आगे और क्या चाहिए? कितना बड़ा अवसर प्राप्त है कि जिसकी उपमा नहीं दी जा सकती। ऐसा करो जिससे संसार के क्लेश सदा के लिये मिट जायें। अपने आपको ज्ञानमात्र स्वयं मानकर अपने आप में रम कर स्वयं सुखी होओ। महान स्वीभ्रांतिजः क्लेशो भ्रांतिनाशेन नक्ष्यति। यथात्म्यं श्रदैध तस्मात्स्यां स्वस्मै स्वे सुखी स्वयम् ।।1-33। अपने भ्रम से उत्पन्न हुआ क्लेश तो भ्रम के विनाश से नष्ट होगा, इसलिए यथार्थ स्वरूप की श्रद्धा करूँ और अपने में अपने लिये अपने आप सुखी होऊँ। जगत में जितना भी क्लेश है, वह सब आत्मा के भ्रम का क्लेश है। जैसे मनुष्य सब एक ढंग से पैदा होते हैं, एक ही ढंग से मरते हैं और एक ही ढंग से राग-द्वेष होते हैं, इसी तरह जगत के समस्त प्राणी एक ही ढंग से दुःखी होते हैं, और वह है भ्रम । बाहरी पदार्थों में आत्मतत्त्व का भ्रम हो गया, इसलिये क्लेश हुआ। जब इस भ्रम को नष्ट करेंगे, तो ये क्लेश नष्ट हो सकते हैं, अन्यथा नहीं होंगे। __इस जगत के प्राणी मोह की नींद में सो रहे हैं और मोह की नींद वह है जहाँ पर सब दुःखी रहते हैं। यह मेरा घर है, यह मेरा वैभव है, यह मेरा परिवार है, इतना मेरा बन गया है, इतने का नुकसान हो गया, अपमान हो गया, इज्जत मिट गयी। सारे अपने मोह को ही देख रहे हैं। देखो, कैसा वह ज्ञानानन्दस्वरूप है। यह जीव अपने आनन्द की सत्ता में है। जिसका स्वरूप भगवान् स्वरूप है, ऐसा ज्ञानानन्दस्वभाव में यह सब है। लेकिन मोह में पड़े हुए हैं और सारा जगत लाभ-हानि मानकर दुःखी हो रहा है। इस जीव के दुःखों को मिटाने में कौन समर्थ है? क्या परिवार के लोग या मित्रजन? क्या भगवान् ऐसे मोह के दुःखों को मिटा सकते हैं? कोई दुःख मिटाने में समर्थ नहीं है। 0 4180
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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