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________________ चारों गति संबंधी आयु का बंध होने पर सम्यक्त्व हो सकता है, इसलिये बद्धायुष्क सम्यग्दृष्टि का चारों गतियों में जाना संभव है। परन्तु यह नियम है कि सम्यक्त्व के काल में यदि मनुष्य और तिर्यंच के आयुबंध होता है, तो नियम से देवायु का ही बंध होता है। सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के बहिरंग कारण - कारण दो प्रकार के होते हैं- एक उपादान कारण और दूसरा निमित्तकारण। जो स्वयं कार्यरूप परिणत होता है, वह उपादान कारण कहलाता है और जो कार्य की सिद्धि में सहायक होता है, वह निमित्त कारण कहलाता है। अंतरंग और बहिरंग के भेद से निमित्त के दो भेद हैं। सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति का उपादानकारण आसन्नभव्यता आदि विशेषताओं से युक्त आत्मा है। कहा भी आसन्नभव्यता कर्महानि संज्ञित्व शुद्धि भाक् । देशनाद्यस्तमिथ्यात्वोजीः सम्यक्वमश्नुते ।। सा.ध.।। अंतरंग निमित्तकारण सम्यक्त्व की प्रतिबंधक सात प्रकृतियों का उपशम, क्षय अथवा क्षयोपशम है और बहिरंग निमित्तकारण सद्गुरु आदि हैं। अंतरंग निमित्तकारण के मिलने पर सम्यग्दर्शन नियम से होता है, परंतु बहिरंग निमित्त के मिलने पर सम्यग्दर्शन होता भी है और नहीं भी होता है। सम्यग्दर्शन के बहिरंग निमित्त चारों गतियों में विभिन्न प्रकार के होते हैं। जैसे- नरकगति में तीसरे नरक तक जातिस्मरण, तीव्रवेदना, धर्म श्रवण ये तीन; चौथे से सातवें तक जातिस्मरण, तीव्रवेदनानुभव ये दो। तिर्यंच और मनुष्यों में जातिस्मरण, धर्मश्रवण और जिनबिंव दर्शन ये तीन। देवगति में बारहवें स्वर्ग तक जातिस्मरण, धर्मश्रवण, जिनकल्याणकदर्शन और देवर्द्धिदर्शन ये चार। तेरहवें से सोलहवें स्वर्ग तक देवर्द्धिदर्शन को छोड़कर तीन। और आगे नौवें ग्रैवेयक तक जातिस्मरण तथा धर्मश्रवण ये दो बहिरंग निमित्त हैं। ग्रैवेयक के ऊपर केवल सम्यग्दृष्टि ही उत्पन्न होते हैं, इसलिये वहाँ बहिरंग निमित्त की आवश्यकता नहीं है। 0 399 0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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