SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 391
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पागल हों। मात्र नीची दृष्टि किये खड़े हैं। पुनः ग्वाला उनको कुछ हिलाता डुलाता है किन्तु महाराज के होंठ नहीं खुलते, उनका ध्यान भंग नहीं होता । अन्त में निराश होकर ग्वाला जंगल में अपने पशु खाजने चला जाता है। शाम तक जंगल में भटकता है । लौटकर वह देखता है कि सारे पशु महाराज के पास खड़े हैं। वह कहता है- "अरे यह साधु तो बड़ा चाल बाज है, धोखेबाज है, बहुत होशियार है, मेरे पशुओं को इसने कहीं छिपा रखा था, अब भागने की तैयारी कर रहा है। मुझे दूर से देख कर फिर से मौन लेकर खड़ा हो गया है। रात में पशुओं को लेकर जरूर भाग जाता।" ग्वाला अब क्रोध में आ जाता है और जोर से चिल्लाकर कहता है - मैं देखता हूँ तुम्हारा बहरा - गूंगापन और वह उन्हें लकड़ी से मारना शुरू कर देता है। जंगल का देवता यह देखकर घबरा जाता है, क्योंकि वन देवता को मालूम है कि ये वीतरागी संत हैं, ऐसा देव पुरुष मुश्किल से ही देखने को मिलता है। वन देवता पास आता है और मुनि महाराज से आज्ञा माँगता है— कि आप हमें आज्ञा दीजिये जिससे हम इस ग्वाले को इसकी करनी का सबक सिखा दें। किन्तु ध्यान मग्न महाराज तो आत्मा के रस में डूबे थे। उन्हें बाह्य जगत से कुछ लेना देना नहीं था। वे अपनी आत्मा में स्थिर थे। अतः उन्होंने न ग्वाले की आवाज सुनी और न ही शरीर पर हुये हमले का अनुभव किया। सम्यग्दर्शन धर्म का मूल है। सम्यग्दर्शन का तात्पर्य है समसत पर द्रव्यों से भिन्न अपनी आत्मा की श्रद्धा करना है, जिसे सच्चे देव - शास्त्र - गुरू का आलम्बन लेकर सम्यक् पुरुषार्थ द्वारा यह जीव प्राप्त कर सकता है। शास्त्रों में सम्यग्दर्शन होने से पूर्व पाँच लब्धियों का होना कहा है। उन पाँच लब्धियों के नाम हैं- क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य और करण। 1. क्षयोपशम लब्धिः जिसके होने पर तत्त्व विचार हो सके ऐसा ज्ञानावरणादि कर्मों का क्षयोपशम् हो अर्थात् उदयकालको प्राप्त सर्वघाती स्पर्द्धकों के उदय का अभाव सो क्षय तथा आनागतकाल में उदय आने योग्य उन्हीं का सत्तरूप रहना सो 391
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy