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________________ समझा। परीक्षा में वे पास हो गईं, रामचन्द्र जी उनसे कहते हैं-देवी! घर चलो। अब तक हमारा स्नेह हृदय में था, पर अब आँखों में आ गया है। सीता जी ने जवाब दिया-रामचन्द्र जी! यह घर दुःख रूप वृक्ष की जड़ है, अब मैं इसमें नहीं रहूँगी। सच्चा सुख तो इसके त्याग में ही है। रामचन्द्र जी ने बहुत मनाया और कहा कि यदि मैं अपराधी हूँ, तो लक्ष्मण की ओर देखो। यदि वह भी अपराधी है, तो अपने बच्चों लव-कुश की ओर देखो और एक बार पुनः घर में प्रवेश करो। परन्तु सीता अपनी दृढ़ता से च्युत नहीं हुईं उन्होंने उसी समय केशलोंच कर आर्यिका माता की दीक्षा ले ली और जंगल चली गईं। यह सब काम सम्यग्दर्शन का है। परद्रव्यों से भिन्न अपनी आत्मा के सहज चैतन्य स्वरूप की श्रद्धा होना सम्यग्दर्शन कहलाता है। आत्मा के श्रद्धान के बिना मोक्षमार्ग नहीं मिलेगा। बाहरी चीजों में पड़कर इस आत्मा का कुछ भी हित नहीं है। 381 0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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