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________________ जीव शरीर से भिन्न आत्मा को नहीं पहचानते और परपदार्थों से सुख की भीख माँगते रहते हैं। एक राजधानी में एक फकीर भीख माँगता था। वह एक ही जगह बैठकर 30 वर्ष से भीख माँग रहा था। एक दिन वह मर गया। उसके चारों तरफ की जमीन गन्दी हो गई थी। इसलिये उसे जब लोग लेकर जाने लगे तो जहाँ वह बैठता था वहाँ चारों तरफ जमीन खोदी गयी। लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। हजारों आदमी वहाँ इकट्ठे हो गये। वहाँ जमीन के नीचे धन गड़ा हुआ था। बहुत खजाने भरे हुये थे। उस भिखारी ने सब जगह हाथ फैलाया, परन्तु अपने नीचे खोदकर नहीं देखा। लोग कहने लगे कि भिखारी पागल था। इसी प्रकार हम भी धन के पीछे दौड़ लगा रहे हैं ओर उससे सुख की इच्छा कर रहे हैं, लेकिन उसमें सुख था ही कब? जहाँ देखो वहाँ, जैसे रेस में घोड़े दौड़ते हैं और हम सोचते हैं कि मेरा घोड़ा पीछे न रह जाये, वैसे हम लोग धन के, मान के प्यासे 24 घण्टे दौड़ रहे हैं कि मैं सबसे आगे निकल जाऊँ, परन्तु अपने अन्दर झाँक कर देखो कि तीनलोक का नाथ अपना चैतन्य प्रभु अपने में ही विराजमान है। कहीं बाहर खोजने की जरूरत नहीं है। हमने अनन्त काल ये सुख – शान्ति को बाहर, में मंन्दिर में, तीर्थों पर, सब जगह खोजा, परन्तु अपने अन्दर में झाँक यदि लेता, तो कहीं खोजना नहीं पड़ता, क्योंकि जहाँ था वह वहाँ हमने खोजा ही नहीं। कबीरदास जी ने लिखा है - ज्यों तिल माहिं तेल है, ज्यों चकमक में आग। तेरा स्वामी तुझमें, जाग सके तो जाग।। जिन्हें आत्मा की अनुभूति हो जाती है, वे सम्यग्दृष्टि जीव संसार में रहते हुये भी अपने आत्मिक निराकुल सुख का पान करते रहते हैं। एक बार अकबर बादशाह और बीरबल बैठे थे। अकबर ने कहा कि आज मैंने एक स्वप्न देखा कि आप और हम दोनों भागे जा रहे हैं। मैं एक गन्ने के रस के गड्ढे में गिर गया और आप गोबर के गड्ढे में गिर गये। बीरबल ने 20 378_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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