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________________ मोह के कारण यह जीव अनादिकाल से अपने शुद्ध स्वरूप को भूल रहा है। जिस ज्ञानी के अनंत पदार्थों में यह भाव आ गया कि जगत में मेरा कोई नहीं है, उसका बड़ा भारी दुःख मिट गया । ऐसे ज्ञानी को पं. बनारसी दास जी ने नमस्कार किया है भेद - विज्ञान जग्यौ जिनके घट, सीतल चित्त भयो जिमिचंदन | केलि करें शिव मारग में जगमाहिं जिनेश्वर के लघुनंदन ।। सत्यसरूप सदा जिन्हके, प्रकट्यो अवदात मिथ्यात्व निकंदन । शान्त दसा तिन्ह की पहिचान, करें कर जोरि बनारसि बंदन ।। जिनके हृदय में निज - पर विवेक प्रकट हुआ है, जिनका चित्त चंदन के समान शीतल है अर्थात् कषायों का आताप नहीं है, जो निज-पर विवेक होने से मोक्षमार्ग में मौज करते हैं, जो संसार में अरहंतदेव के लघुपुत्र हैं, अर्थात् थोड़े ही काल में अरहन्तपद प्राप्त करने वाले हैं, जिन्हें मिथ्यादर्शन को नष्ट करनेवाला निर्मल सम्यग्दर्शन प्रकट हुआ है, उन सम्यग्दृष्टि जीवों की आनन्दमय अवस्था का निश्चय करके पं. बनारसी दास हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं। जो सम्यग्दृष्टि जीव हैं, जिनका मोह चला गया है, वे शरीर और आत्मा को भिन्न-भिन्न मानते हैं। पर जो मोही जीव हैं, वे शरीर को ही अपना मानते हैं और शरीर की पीड़ा को अपनी पीड़ा मानते हैं I एक फकीर किसी गाँव में ठहरा हुआ था। लोग उसके दर्शन करने आते थे और अपनी शंकाओं का समाधान करते थे । एक आदमी आया और पूछा कि यह कैसे सम्भव है, कि शरीर में दर्द हो अथवा चोट लगे, कोई उसको काटे, तब भी पीड़ा न हो? शरीर को काटने से तो पीड़ा होगी । फिर शरीर और आत्मा को अलग-अलग मानने से क्या सिद्धि हुई ? फकीर ने कहा- यहाँ दो नारियल पड़े हैं। एक कच्चा है, उसमें पानी है, उसको तोड़कर उसकी गिरी अलग करना चाहो तो नहीं होगी; क्योंकि वह गिरी नारियल (काठ) के साथ जुड़ी हुई है । यह दूसरा नारियल है, इसका पानी सूख गया है, इसकी गिरी नारियल (काठ) से अलग हो गई है। इसको तोड़ने पर गिरी को कोई हानि नहीं होगी। नारियल का खोल और गिरी अलग-अलग हो गई है। फकीर ने कहा कि यही आश्चर्य U 356 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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