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________________ तू चेतन अरु यह देह अचेतन, यह जड़, तू ज्ञानी। मिले अनादि, यतन ते विछुड़े, ज्यों पय अरू पानी।। तू चेतन है, यह देह अचेतन है। यह शरीर जड़ है, तू ज्ञानी है। दोनों का अनादिकाल से मेल बना हुआ है। पर रत्नत्रय के मार्ग पर चलकर दोनों को पृथक्-पृथक् किया जा सकता है। ‘ज्यों पय अरु पानी' यानि दूध और पानी को जिस तरह अलग-अलग किया जा सकता है, ऐसे ही शरीर से भिन्न इस आत्मा के सम्बन्ध को भी अलग-अलग किया जा सकता है। भेदविज्ञान होते ही शरीर और आत्मा के भेद का ज्ञान हो जाता है, आत्मा की सही पहचान हो जाती है। अतः, पर के आकर्षण को छोड़कर आत्मस्वरूप को समझने का प्रयास करो। जब इस जीव को सच्चा भेदविज्ञान हो जाता है, तब वह स्व को स्व ओर पर को पर समझने लगता है और धीमे-धीमे उसकी प्रवृत्ति में भी अन्तर आने लगता है। अपना मानने में हमारा व्यवहार दूसरा होता है। और पराया मानने में हमारा व्यवहार दूसरा होता है। जैसा ‘समयसार' ग्रन्थ में आचार्य कुन्द-कुन्द महाराज ने एक उदाहरण दिया है - जो परद्रव्य को परद्रव्य मान लेता है, वह उसके साथ अपने व्यवहार को बदल लेता है। जैसे कोई व्यक्ति धोबी के यहाँ से कपड़े लाकर पहनकर जा रहा है उसे रास्ते में एक व्यक्ति मिला और बोला-भइयाजी! ये कपड़े तो मेरे हैं, आप इन्हें कहाँ से लाये? वह बोला-नहीं, ये कपड़े तो मेरे ही हैं, मैं तो अभी-अभी धोबी के यहाँ से लेकर आया हूँ। वह व्यक्ति बोला-नहीं, आप भूल गये हैं, ये कपड़े तो मेरे हैं, आप निशान देख लीजिये। निशान देखा तो वह समझ गया ये कपड़े तो इन्हीं के हैं। अब उसकी दृष्टि बदल गई। अभी तक अपने मानकर पहने था तो लग रहा था कि मेरे कितने अच्छे कपड़े हैं, सभी लोग देख लें। पर अब जब यह जान गया कि ये मेरे नहीं हैं, किसी और के हैं, तो चुपचाप चला जाता है घर कि मैं क्या करूँ जल्दी घर पहुँचू और इनके कपड़े इन्हें वापिस कर दूँ। अब दिखाने का मन नहीं हो रहा अब तो कोई देख न ले, इस बात की मुश्किल लग रही है। 355 in
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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