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________________ नाम लगता है। प्रवचन में यदि थोड़ा भी ज्यादा समय हो गया तो कहते हैं कि अरे! एक घंटा हो गया, देड़ घंटा हो गया पौन घंटे में हो जाना चाहिये था। स्वाध्याय जल्दी खत्म हो जाये तो अच्छा है। यद्यपि गृहस्थी के कार्यों में वे आराम से घुटने टेके बैठ रहें, कोई परेशानी नहीं है। वहाँ कितनी ही अड़चने हों, फिर भी उनको परेशानी नहीं होती है। एक कथानक आता है। फालतू की जिद में एक मास्टर-मास्टरनी तीन दिन तक भूखे मौन से लेटे रहे। एक मास्टर-मास्टरनी थे। दोनों ही अलग-अलग स्कूलों में पढ़ाने जाते थे। एक बार इतवार के दिन मास्टर ने 'बड़ा' बनाने का प्रोग्राम बनाया। बहुत अच्छा सब सामान बाजार से खरीदकर मास्टर ने घर में लाकर रख दिया। अब मास्टरनी बड़ा बनाने लगीं। बनाते-बनाते कुल 21 बड़े बने । अब मास्टर भोजन करने बैठे, 10 बड़े मास्टर को परोस दिये और ग्यारह बड़े अपने लिये रख लिये। कभी मजाक भी हो जाती है। जरा-सी बातों में जिद हो जाती है। मास्टर ने कहा-हमें 10 बड़े परोसे और अपने लिये ग्यारह रख लिये? मास्टरनी बोलीमैंने तो परिश्रम किया है इसलिये मैं ग्यारह खाऊँगी और आप दस खाओ। दोनों का निर्णय हो गया कि दोनों चुप हो जावें। जो पहले बोलेगा उसे दस मिलेंगे। अब दोनों चुप हो गये। एक दिन हो गया, 2 दिन हो गये, भूखों मरे जा रहे हैं। भूखों मरते तीन दिन हो गये, मगर जिद नहीं छोड़ी। स्कूल के बच्चों ने देखा कि मास्टर तीन दिन से स्कूल नहीं आ रहे हैं, सो वे मास्टर के घर आये। देखा कि दोनों मरे पड़े हैं। मरे नहीं थे, पर मरे से हो गये, नहीं तो बोलना पड़ेगा। सब लोग जुड़ गये। सब लोगों ने कहा-देखो, दोनो एक-साथ मर गये। चलो इनकी अर्थी बनाकर लिटा लें और ले चलें। यद्यपि मरे नहीं थे, पर मरे से हो गये चुप रहने की जिद में। लोगों ने अर्थी बना ली और दोनों को लिटा लिया। अर्थी ले गये। आग लगाने ही वाले थे कि मास्टरनी ने देखा कि अब हम दोनों नहीं बचेंगे। तो भाग्य की बात देखो कि अर्थी ले जाने वाले भी इक्कीस लोग थे। मास्टरनी झट बोली-आप ग्यारह खा लेना, मैं दस खा लूँगी। उन लोगों ने समझा कि ये मरकर भूत हो गये हैं। वे डर गये कि अरे! ये तो हम सबको खा जावेंगे। इसलिये सब छोड़कर भाग गये। दोनों ही घर गये, बोले कि जो पहले __0_351_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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