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________________ जो अपनी आत्मा को शरीरादि परद्रव्यों से भिन्न चैतन्यमय जानता है, उसे यह संसार नाटकवत् या स्वप्नवत् लगने लगता है। मान लीजिये कि कोई अभिनेता अभिनय करते हुये अपने असली रूप को भूल जाता है, नाटक या फिल्म में अपने पार्ट या रोल को ही वास्तविक मान लेता है और फलस्वरूप दुःखी - सुखी होने लगता है, तो फिर उसका वह दुःख कैसे दूर हो? उपाय बिल्कुल सीधा है। यदि उसे अपने निजरूप का जिसे वह अभिनय के दौरान भुला बैठा है - फिर से अहसास करा दिया जाये, तो उसका रोल वास्तविक न रहकर केवल नाटकीय रह जायेगा और अभिनय करते हुये भी उसका भीतर से दुःखी - सुखी होना मिट जायेगा । यही सही उपाय है उसका दुःख दूर करने के लिये । रोल बदलना सही उपाय नहीं है, क्योंकि रोल तो गरीब का, अमीर का, निर्बल का, बलवान का मिलते ही रहेंगे। परन्तु यदि अपना खुद का अहसास बना रहे तो चाहे जैसा भी रोल हो, उसको अदा करते हुये भी दुःखी नहीं होगा । T T बिल्कुल इसी प्रकार इस जीव की स्थिति है। यह जीव निरन्तर कर्म के अनुसार मनुष्य, देव, पशु, नारकी का रोल कर रहा है, अतः उस रोल को ही अपना स्वरूप मानता है और इष्ट पदार्थों में राग व अनिष्ट पदार्थों में द्वेष करके नवीन कर्मों का संचय करता है । इन कर्मों के फलस्वरूप फिर नया रोल मिलता है। यदि अच्छे कर्मों का संचय किया तो धनवान का, राजा-महाराजा का, निरोगी - स्वस्थ- बुद्धिमान व्यक्ति का, इन्द्र - देवेन्द्र आदि का रोल मिल जाता है। यदि बुरे कर्मों का संचय किया तो गरीब - दरिद्र, रोगी - अपंग - कुरूप - मूर्ख व्यक्ति का, पुश-पक्षी आदि का रोल मिल जाता है। जो भी अच्छा-बुरा रोल मिलता है, वह इस जीव की इच्छा के अधीन नहीं मिलता है, अपितु इसके पूर्वकृत कर्मों के अधीन ही मिलता है। चूँकि यह जीव स्वयं के निजरूप को नहीं जानता, अतः उस कर्मकृत शरीर को मान लेता है कि 'यही मैं हूँ' और उसी के साथ समूचे परिवार में, समूची बाहय् सामग्री में भी अपनापन मान लेता है । तथा शरीर को इष्ट लगने वाले पदार्थों में राग और अनिष्ट लगने वाले पदार्थों में द्वेष करके पुनः नवीन कर्मों का संचय कर लेता है, जिसके फलस्वरूप पुनः शरीर आदि की प्राप्ति होती है। यह चक्कर बराबर चलता रहता है । 31 S
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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