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________________ भावना तो यही रहती है कि कब मिले? कब मिले वह? इस प्रकार उसका एक-एक समय कटता रहता है और श्रुत की आराधना करते हुये वे सम्यग्दृष्टि देव समय व्यतीत करते हैं। इस अपेक्षा से सोचा जाये तो आज भी मुक्ति है। इस जीव की कहानी निगोद से आरंभ होती है और मोक्ष में जाकर समाप्त होती है, जहाँ वे "रहि हैं अनन्तानन्तकाल, यथा तथा शिव परिणये।” जो जीव मोक्ष में चले गये हैं, वे अनन्तसुखी हैं तथा वहाँ अनन्त काल तक रहेंगे। जब तक मोक्ष नहीं गये, तो समझ लेना कि हमारी कहानी अभी समाप्त नहीं हुई, बीच में ही चल रही है। सिद्धों की भी समाप्त कहाँ हुई? अभी भी चल ही तो रही है। वे सिद्ध जीव अनन्तकाल इसी प्रकार अनन्तसुखी रहेंगे - एक राजा था, उस राजा की यह आदत थी कि जो भी फरियादी उसके पास आता और राजा से कहता कि उसने मुझे पीट दिया। तब राजा उससे पूछता था कि फिर क्या हुआ? फिर क्या हुआ? फिर क्या हुआ? ऐसा पूछता ही रहता था। आखिर वह फरियादी अंत में कहता- इसके बाद कुछ नहीं हुआ। तब राजा कहता कि कुछ नहीं हुआ तो जाओ। आखिरकार अंत में तो कहना ही पड़ेगा कि कुछ नहीं हुआ। एक आदमी उस राजा के पास गया और उसने कहा कि मैंने खेती की और गेहूँ बोये । राजा ने पूछा फिर क्या हुआ? उसने कहा-अच्छी बरसात हुई, इतने अधिक गेहूँ पैदा हुये कि मैं उन्हें समेट नहीं सका। फिर क्या हुआ? मैंने एक वेयर हाउस किराये से लेकर, गेहूँ बोरों में भरकर, सब गेहूँ उसमें रख दिया। राजा ने कहा, फिर क्या हुआ? एक चिड़िया आती और गेहूँ का एक दाना लेकर फुर्र करके उड़ जाती। चिड़िया आई, एक दाना लिया और फुर्र करके उड़ गई। फिर क्या हुआ? चिड़िया आई ............ | राजा ने पूछा कि तेरी यह फुर्र–फुर्र बाजी समाप्त होगी या नहीं? DU 296 in
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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