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________________ रानियाँ हैं, उनकी पटरानी बनाऊँगा।" तब सीता कहती है कि यह सब मेरे लिए मिट्टी के समान हैं। अगर तू मूझे हाथ लगाएगा, तो नरक जायेगा। उस रावण ने भोग के लिए बहुरूपिणी विद्या शान्तिनाथ भगवान् के चैत्यालय में सिद्ध की। अखंड ध्यान को भोग के लिए लगाया । अगर इतना ध्यान आत्मा में लगा लेता तो मोक्ष चला जाता, लेकिन भोगों की वजह से नरक जाना पड़ा। I सोचा करता हूँ भोगों से, बुझ जावेगी इच्छा ज्वाला । परिणाम निकलता है लेकिन, मानों पावक में घी डाला । । हम भोगों से इच्छा को बुझाना चाहते हैं, लेकिन वह बुझ नहीं सकती, बल्कि भोगने से और ज्यादा भड़कती है, जैसे अग्नि में घी डालने से अग्नि ज्यादा तेज होती है। एक समय की बात है कि भवदेव और भावदेव दो भाई थे । भवदेव तो निमित्त पाकर देव हो गया और भावदेव घर में स्त्री में रत रहता था। लेकिन भवदेव का भाव यह भी रहा कि मेरा भाई कल्याण कर ले। उसने नगर में आकर भाई को उपदेश दिया । वह भावुकता में आकर मुनि बन गया, लेकिन मन भोगों में रहा। सोचता रहता था कि कब नगर में जाऊँ और अपनी स्त्री से मिलूँ। लेकिन वह स्त्री तो आर्यिका के व्रत ले चुकी थी । वह भावदेव मौका पाकर नगर में आया और हर प्राणी से पूछता कि भावदेव की स्त्री को देखा है ? वह कह देते कि हमको नहीं मालूम । घूमता- घूमता मंदिर में पहुँच गया, वहीं पर वह भी ठहरी थी। उससे भी भावदेव ने यही पूछा । साध्वी पहिचान कर बोलीयोग क्यों लिया था जब भोग भोगने की इच्छा थी? सारांश यह है कि वह फिर वास्तविक योगी बन गया । अगर साधु बनने के बाद भोग चाहिए, बढ़िया खाने को, कूलर - पंखे और बाजे, अनेक सामग्रियाँ चाहिए, तो साधु क्यों बने ? भोगों को कहाँ-कहाँ तक कहा जाये। जब तक भोगों में मन है, तब तक साधना अथवा योग नहीं है। योगी को भेदविज्ञान की कला में पारंगत होना चाहिये । स्व-पर का भेदज्ञान होने पर भोगों की लालसा व मोह विलीन हो जाता है । एक नगर में एक धार्मिक प्रकृति का राजा न्यायपूर्वक राज्य करता था । 2732
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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