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________________ बचे। प्यास से व्याकुल चलते हुए ये खेट ग्राम के कुँए पर पहुँचे। उसी समय जल भरने के निमित्त आई हुई जिनपाल की पुत्री जिनदत्ता ने उन्हें जल पिलाया और पिता से जाकर सब समाचार कह दिये। ये कोई महापुरुष हैं, ऐसा विचार कर जिनपाल उन्हें आदर-सत्कारपूर्वक अपने घर ले गया और जिनदत्ता के साथ उनकी शादी कर दी। जिनदत्ता को पटरानी के पद पर नियुक्त कर राजा सुख से रहने लगा। समय पाकर उन दोनों के वृषभसेन नाम का पुत्र हुआ। वृषभसेन जब आठ वर्ष के थे तब राजा प्रद्योत पुत्र को राज्यभार देकर दीक्षा लेना चाहते थे। पुत्र ने दीक्षा लेने का कारण पूछा तो पिता ने कहा-बेटा! राज्य का भोग भोगते हुए सच्चे सुख की प्राप्ति नहीं होती। उसके लिये तपश्चरण आवश्यक है। सच्चे सुख की बात सुनकर बहुत समझाये जाने पर भी पुत्र ने इन्द्रियसुखों के कारणभूत राज्य को ग्रहण नहीं किया और पिता के साथ ही उसने भी जिनदीक्षा धारण कर ली। वृषभसेन मुनिराज तपस्या करते हुए अकेले ही अनेक देशों में घूमते हुए कौशाम्बी नगर में आये और छोटी-सी पहाड़ी पर ठहर गये। गर्मी का समय था, धूप तेज पड़ रही थी। मुनिराज एक पवित्र शिला पर बैठ कर ध्यान करते थे। कड़ी धूप में इस प्रकार की योग साधना तथा आत्मतेज से उनके शरीर का सौन्दर्य इतना दैदीप्यमान हो उठा कि लोगों के हृदयों में उनकी श्रद्धा अति दृढ़ होती गई और जैनधर्म का प्रभाव वृद्धिंगत होने लगा एक दिन मुनिराज जब शहर में आहारचर्या को गये थे, तब जैनधर्म के प्रभाव को सहन न कर सकने वाले बौद्ध बुद्धदास ने उस शिला को अग्नि से संतप्त करके लाल कर दिया। महाराजश्री जब आहार से लौटे तब उस शिला को अग्नि से तप्त देखा, किन्तु अपनी प्रतिज्ञानुसार वे उसी शिला पर बैठ गये। उस समय उन्होंने अपने भौतिक शरीर से मोह का परित्याग कर चारों आराधनाओं की शरण ली और भेदविज्ञान के बल से आठों कर्मों को नाश कर निर्वाण लाभ किया। अभयघोष मुनिराज ने वध परीषह पर विजय प्राप्त कर केवलज्ञान प्राप्त किया। काकन्दीपुर में राजा अभयघोष राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम 0 245_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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