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________________ पालन करें। कर्म भी आते रहें और संवर भी करते रहें, तो साधना समीचीन नहीं है। पानी भी गिरता रहे और पानी में खड़े होकर शरीर पोंछते रहें, कपड़े सुखाते रहें, तो न शरीर सूखेगा और न ही कपड़े सूखेंगे और मेहनत भी व्यर्थ चली जायेगी। संवर का अर्थ कर्मास्रव को रोकना है। अतः अपनी प्रत्येक क्रिया को यत्नाचारपूर्वक करें तथा अपनी शक्ति अनुसार व्रतों का पालन करें। व्रत जीवन को अनुशासित करते हैं और पापबन्ध से मुक्त कराते हैं। अतः संवर को प्राप्त करने के लिये व्रतों का पालन करें। आचार्य श्री विद्यासागर जी महराज ने लिखा है - अनादिकालीन राग-द्वेष और मोह के माध्यम से जो कर्मों का आस्रव रूपी प्रवाह अविरल रूपेण आ रहा है उसको आत्म पुरुषार्थ के बल पर रोक देना संवर कहलाता है। "आस्रव निरोधः संवरः । कर्मों के आने के द्वारों को बन्द करने के लिए आचार्य उमास्वामी महराज ने एक सूत्र दिया है-"स गुप्ति समिति धर्मानुप्रेक्षा परीषहजय चारित्रैः ।" जो व्यक्ति मोक्षमार्ग पर चलता है, चलना चाहता है, उसके लिये सर्व प्रथम संवर तत्त्व अपेक्षित है और संवर तत्त्व को निष्पन्न करने के लिये जो समर्थ हैं, वे ये हैं - गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषहजय और चारित्र। ये माला है। इन्हीं मणियों के माध्यम से संवर होगा, और कोई भी शक्ति विश्व में नहीं है जो कर्मों का संवर कर सके। "संवर कारणात आत्मनः गोपनं गुप्तिः ।" ___ संसार के कारणों से आत्मा की जो सुरक्षा कर देती है, उसका नाम है गुप्ति। जब गुप्ति के माध्यम से कर्मों का आना रुक जाता है, तब योग ठीक-ठीक काम कर सकता है। कर्मों का आना बना रहे और हम अपने गुणों का विकास करना चाहें तो तीनकाल में नहीं हो सकता। तीन गुप्तियाँ होती हैं और गप्ति के अलावा संवर का और कोई उत्तम साधन नहीं है। ___गुप्ति की प्राप्ति समिति के माध्यम से होती है और समिति को समीचीन बनाना चाहे तो दशलक्षण धर्म के बिना नहीं बन सकती और दशलक्षण धर्म का यदि हम सही-सही पालन करना चाहें, उत्तमता प्राप्त करना चाहें, तो बारह ___0_230_0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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