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________________ मुझे बचाया है। मैं जीवनपर्यन्त तुम्हारा दास रहूँगा। परम प्रभु परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ कि पृथ्वी पर ऐसे ही महान लोग जन्म लेते रहें। आपने बहुत बड़ा उपकार किया है। मुझ जैसे अभागे को अभयदान दिया है। आपने मुझे मरने से बचा लिया है। अन्तिम व्यक्ति व्यवहारी था। प्रथम व्यक्ति बौद्ध का अनुयायी था, दूसरा व्यक्ति सिद्धांतशास्त्री था, तीसरा व्यक्ति नियतवादी था, चौथा व्यक्ति नेता था। नेता हमेशा मन के रथ पर सवार रहते हैं। उन्हें दूसरों के दुःख से कोई मतलब नहीं होता है। उनका समग्र जीवन मान-सम्मान की धूल एकत्र करते हुए गुजर जाता है। सिद्धांतों के रटने से परमात्मा नहीं मिलता। जीवन का सत्य सिद्धान्त रटने से उजागर नहीं होता। उसे उजागर करने वाला तत्त्व है 'आचरण' । अगर आप जल गये हैं, जलन बहुत हो रही है, तो मात्र औषधि का नाम लेने से नहीं, पान करने से ठीक होता है। सिद्धान्त हर जगह हर समय काम नहीं आते । आचरण ही काम आता है। ___ अब आप स्वयं सोचिये कि उन सब में कौन-सा व्यक्ति श्रेष्ठ है? नियतिवादी तो क्रमबद्ध पर्याय पर छोड़कर चला गया, सिद्धांतवादी कर्म पर छोड़कर चला गया, समाज सुधारक नेता हड़ताल के चक्कर में चला गया और बौद्ध का अनुयायी संसार को दुःखमय बताकर पलायन कर गया। इन चारों से मरते हुए, डूबते हुए व्यक्ति की रक्षा नहीं हो सकी। साधारण सा आचरणवान एक श्रावक अभयदान दे रहा है। आचरण ही जीवन को महान बनाता है। याद रखो! जीवन रूपान्तरित होता है पाप के संवर से और संवर होता है सम्यक् आचरण से। भगवान् महावीर कहते हैं - जो सम्यक् संवर का आदर करेगा, वह निश्चित आचरण को अपनायेगा और सम्यक् आचरण ही आदमी को आदमी से जोड़ता है। सम्यक् आचरण वही कर सकेगा जो संसार, शरीर भोगों से उदासीन होगा। इन तीनों से उदासीन होने वाला ही भावसंवर को उपलब्ध होता है। संवर प्रदर्शन से, दिग्दर्शन से नहीं, आत्मदर्शन से उपलब्ध होता है। कर्मों का संवर करने के लिये सर्वप्रथम पाप का नाश करें, चारित्र का su 229 0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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