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________________ बार जब वे किसी पहाड़ी पर से गुजर रहे थे तब उन्हें अचानक एक लोहे की खदान दिखाई दी। चारों ने एकसाथ कहा- चलो, मित्रो! हम लोहा ही ले चलते हैं, इसी से हम अपने भाग्य को आजमायेंगे । अतः वे जितना - जितना उठा सकते थे उन्होंने उतना-उतना बड़ा गट्ठर बांध लिया और आगे चले । लोहे का भार अधिक होने पर भी वे चारों खूब प्रसन्न थे । इस प्रकार निरन्तर पहाड़ियों की यात्रा करते-करते वे आगे बढ़ रहे थे । एक दिन उन्हें चाँदी की एक खदान मिल गई । चाँदी की खदान को देखकर वे मन-ही-मन अपने भाग्य को सराहने लगे। कुछ सोच-विचार कर वे एक दूसरे से कहने लगे कि हमें इस लोहे के भार को छोड़कर चाँदी का गट्ठर बाँध लेना चाहिये। उन चारों में एक मित्र को यह बात नहीं जँची । वह आग्रह बुद्धिवाला था। उसने तुरन्त कहा - मित्रो ! तुम तीनों यह क्या सोच रहे हो? जरा सोचो तो सही कि जिस लोहे को हमने खान में से इतने श्रम से निकाला और इतने लम्बे समय से ढोते आ रहे हैं, उसे आज कैसे छोड़ सकते हैं? इस चाँदी को देखकर हम अपनी मेहनत को बेकार क्यों करें? यह सुनकर तीनों मित्रों को हँसी आ गई। उन्होंने उसे बहुत समझाया, परन्तु वह जिद्दी था। अंत तक उसने यह बात नहीं मानी। तीनों मित्रों ने शीघ्र ही लोहे के गट्ठर को छोड़कर चाँदी का भार ले लिया और आगे की यात्रा पर चल पड़े। पहाड़ियों की ऊबड़-खाबड़ यात्रा करते-करते एक महीना बीतने लगा । एक दिन उन्हें सोने की खदान दिखाई दी। तीनों मित्रों ने सोच समझकर चाँदी का भार छोड़ा और सोने का गट्ठर बाँध लिया। तीनों ने उस आग्रही मित्र के सामने देखा, परन्तु उसने अपना मुँह फेर लिया। चारों आगे की यात्रा पर चल पड़े। कुछ महीनों की पहाड़ी यात्रा के बाद उन्हें हीरे की एक खान मिली । तुरन्त ही तीनों ने सोना फेका और हीरों का गट्ठर बाँध लिया। एक बार फिर से तीनों ने मिलकर उस आग्रही मित्र को बड़े प्यार से समझाया, परन्तु वह अपने लोहे के गट्ठर को छोड़ने के लिये तैयार ही नहीं था, क्योंकि वह किसी भी कीमत पर 1632
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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