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________________ हैं। अंत में सबकी तलाश करने धर्मराज चले। सरोवर के पास जब चारों भाइयों को मूर्च्छित पाया, तो सोच में पड़ गये। इतने में यक्ष प्रकट हुआ और बोला-इन्होंने मेरे प्रश्न के उत्तर नहीं दिये तो मैंने इनको मूर्च्छित किया है। आप भी पहले मेरे प्रश्न का उत्तर दें, तब पानी पी सकते हैं। तब यक्ष ने चारों प्रश्न क्रमशः दोहराए। धर्मराज ने भी चारों प्रश्नों के उत्तर क्रमशः दिए। पहला प्रश्न था कि प्रसन्न कौन है? धर्मराज ने कहा कि प्रसन्न वही है, जो किसी का कर्जदार नहीं है। दूसरा प्रश्न था कि आश्चर्य क्या है? धर्मराज ने कहा कि प्रतिदिन अनेक प्राणी मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं, यह बात प्रत्यक्ष में जानकर भी जो शेष बचे हुए लोग हैं वे सदैव यहाँ रहने की इच्छा करते हैं। भला इससे बढ़कर आश्चर्य और क्या हो सकता है? तीसरा प्रश्न था कि समाचार क्या है? धर्मराज ने कहा कि समय बीत रहा है और प्रतिपल हम मृत्यु के निकट पहुंच रहे हैं, बस यही समाचार है। अंतिम प्रश्न था कि किस पथ का अनुसरण करना चाहिये। धर्मराज ने कहा कि पथ वही है, जिस पथ पर महापुरुष चल रहे हैं। क्योंकि अनेक पथ व्यक्ति को भ्रमित कर सकते हैं। युधिष्ठिर से चारों प्रश्नों के युक्ति-युक्त उत्तर मिलने पर यक्ष बड़ा ही प्रसन्न हुआ और बोला-हे धर्मराज! मैं तुम्हारे द्वारा दिये गये प्रश्नों के उत्तर से बहुत ही संतुष्ट हुआ हूँ। अतः इन चार भाइयों में से जिस किसी एक को तू चाहे उसी को मैं जिन्दा कर सकता हूँ। कुछ पल सोचकर धर्मराज ने कहा कि मैं माद्रीपुत्र नकुल को जीवित देखना चाहता हूँ। यह सुनकर यक्ष आश्चर्य में पड़ गया और बोला-महाबली भीम और युद्ध परायण अर्जुन को छोड़कर अपने सौतेले भाई को ही जीवित रखना क्यों चाहते हो? तब धर्मराज ने कहा कि मैं पांडुपुत्र माता कुंती के पुत्रों में से हूँ, तो माता माद्री के पुत्र के रूप में भी एक जीवित चाहिए। यह सुनते ही यक्ष परम प्रसन्न हो गया और चारों भाइयों को जीवित कर दिया। सबने पानी पिया और द्रोपदी के लिए पानी लेकर अपने गंतव्य स्थान को चले गये। 0 160_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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