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________________ सफेद को लेकर वाद-विवाद चलता रहा, तब आखिर सीता माता को आकर यह कहना पड़ा कि दोनों की ही बात सत्य है। माँ सीता ने कहा कि जब हनुमान ने अशोक वाटिका देखी थी, तब वे क्रोध से भरे, आँखें लाल किए हुए थे, तभी तो उन्हें सफेद फूल भी लाल नजर आए और महर्षि वाल्मीकि ने शांत स्वभाव से अशोक वाटिका का रूप निहारा था, तब उन्हें फूल सफेद ही नजर आए होंगे। यही तो दृष्टि है। जिसकी जैसे दृष्टि, उसके वैसे ही परिणाम । परन्तु ध्यान रखना, जब मन की दृष्टि में श्रद्धा व समर्पण होगा, तब पाषाण में भी भगवान् दिखाई दे जाएँगे। यदि हम घर नहीं छोड़ सकते तो घर में जल से भिन्न कमल के समान रहें। 'गृहस्थी निभायें, परन्तु निर्मोही बनकर' | सुखी बनना है तो जैन साधु की तरह निर्मोही बनकर जीना सीखो। गृहस्थी भले ही मत छोड़ो, परन्तु गृहस्थ में निर्मोही बनकर जीना सीख लो। जैन साधु जैसे शरीर को नहीं छोड़ता, परन्तु शरीर से कभी राग अथवा मोह नहीं रखता। उसी तरह गहस्थ भी गहस्थी में रहते हुए यदि निर्लिप्त व निर्मोही बन जाए, तो फिर सम्यग्दर्शन असंभव नहीं है। फिर एक दिन वह गृहस्थी में रहते हुए मुनि की तरह निर्मोही बनकर अपनी आत्मा को मोक्षमार्ग में आगे ले चलेगा। यही तो इस जीवन का मुख्य ध्येय है, जिसे समझो और आगे बढ़ो, कल्याण हो जाएगा। यदि गृहस्थी नहीं छोड़ सकते तो चलो कोई बात नहीं, लेकिन भेदविज्ञानी तो बनो। शरीर से अपने रागी-मोही परिणामों में अब तो कमी लाओ। शरीर की गुलामी और शरीर की पूजा में कब तक अपने जीवन को व्यर्थ खोते रहोगे? वासनाओं का दास तो पता नहीं यह शरीर किन-किन भवों में कितनी अनन्त बार बन चुका। अब तो अपने राग-द्वेष, मोह-माया को कम करके अन्तरात्मा बनो और शक्ति अनुसार व्रत-नियमों का पालन करो। अविरत-सम्यग्दृष्टि जघन्य-अन्तरात्मा कहलाता है और जब वह अणुव्रत और महाव्रतों को धारण कर लेता है तो मध्यम और उत्तम अन्तरात्मा बन जाता है। सभी को कम-से-कम अणुव्रतों का पालन तो अवश्य ही करना चाहिये। अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत और परिग्रह-परिमाण अणुव्रत ये पाँच सूत्र महावीर 0 149
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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