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________________ हीरा जगमगा रहा था। उसी समय उसके घर के पास में ही जिनकुमार का जन्मदिन मनाया जा रहा था, लेकिन उसके पास अच्छे वस्त्र नहीं थे और मिठाई भी नहीं थी। वहाँ तो उसकी प्रिय माता अपने लाड़ले को प्रेमपूर्वक आशीषपूर्वक धर्म का मधुर रस पिला रही थी। __वह अपने बेटे से कहती है-बेटा! बाजू के महल में जैसे ठाट-बाट से तुम्हारे मित्र का जन्मदिन मनाया जा रहा है, वैसा ठाट-बाट तुम्हारे जन्मदिन पर इस झोपड़े में नहीं है। परन्तु इससे तू ऐसा मत मानना की हम गरीब हैं। बेटा! तू सचमुच गरीब नहीं है, तेरे पास तो अपार संपत्ति है। जिनकुमार ने आश्चर्य से कहा-वाह! यहाँ खाने के लिये भी मुश्किल से मिलता है, फिर भी तुम कहती हो कि हम गरीब नहीं हैं। माता ने कहा- बेटा! तू जानता है कि तू कौन है? पुत्र ने कहा – मैं जिनकुमार हूँ। माता ने कहा-यह तो तेरा नाम है। लेकिन तेरे में क्या है, तुझे उसकी खबर है? वह तो पाठशाला में पढ़ा था और माता ने भी उसे धर्म के संस्कार दिये थे। वह बोला-आपने ही बताया था कि मैं जीव हूँ, मेरे में जान है, मैं चैतन्यस्वरूपी आत्मा हूँ। माता ने कहा-धन्य है बेटा! तुम्हारे धर्म के संस्कार देखकर मैं गौरव का अनुभव करती हूँ। बाहर के धन से भले ही हम गरीब हों, लेकिन अन्दर के धन से हम गरीब नहीं हैं। तेरा चैतन्य हीरा तू प्राप्त कर सुखी हो, यही मेरी तुम्हारे जन्मदिन पर भेंट है। वाह! मेरी माता ने मुझे चैतन्य हीरा बताया है। ऐसा विचार कर वह बहुत खुश हुआ। । उसी समय उसका मित्र लक्ष्मीकुमार वहाँ मिठाई लेकर आया। दोनों मित्र आनन्दपूर्वक एक दूसरे से मिले । लक्ष्मीकुमार ने हीरा माता के चरण स्पर्श किए और माता ने उसे आशीर्वाद दिया। लक्ष्मीकुमार ने कहा-माताजी! हमारे यहाँ से आपके लिए मिठाई भेजी है। 0 1280
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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