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________________ इसी प्रकार इन तत्त्वों का अभ्यास करने से जो आत्मज्ञान रूपी अमृत प्राप्त हो, उसे इसी प्रकार पी जाना चाहिए। आचार्य समझा रहे हैं कि तत्त्वज्ञान के अभाव में ही संसारी प्राणी अपनी आत्मा को भूलकर मोहरूपी निद्रा में सो रहे हैं। अतः तत्त्वज्ञान प्राप्त करके अपनी आत्मा को पहचानो, उसी में रुचि करो, रत हो जाओ, तो तुम्हें स्वयं ही महान अनुपम स्वाभाविक सुख प्राप्त होगा। यह आत्मा अचिंत्य शक्ति वाला है। यदि इस आत्मरहस्य की बात को अभी नहीं समझोगे, तो और कब समझोगे? कुछ ही समय बाद आत्मा तो इस शरीर से विदा लेकर नये शरीर में चला जायेगा। यदि असंज्ञी पर्याय पाई, तब तो गये-बीते ही हो गये, फिर क्या है? कोई पूछने वाला ही नहीं। यही मनुष्य पर्याय श्रेष्ठ पर्याय है, अतः अभी इन तत्त्वों का अच्छे प्रकार से अभ्यास कर, पर से भिन्न अपनी आत्मा को पहचान कर, उसी में रमण करो। यदि सुख चाहते हो तो ऐसा करो, यदि नहीं चाहते हो तो जैसा चाहो वैसा करो। हम लोग भगवान को तो मानते हैं पर भगवान की बात को नहीं मानते। कोई अपने पिताजी को मानता हो, पर उनकी बात को न मानता हो, तो उसे क्या मिलेगा? कुछ भी नहीं। इसी प्रकार यदि हम भगवान् के द्वारा बताये गये इन तत्त्वों को नहीं जानेंगे, नहीं मानेंगे, तो इस संसाररूपी दलदल में ही फंसे रहेंगे। अतः अब तो संसार में भटकना छोड़कर तत्त्वों का अभ्यास करने में अपने मन को लगाओ। जरा विचार करो, यदि हमने अपनी आत्मा को जाने बिना ही अपने इस भव को समाप्त कर दिया, तो परभव में मेरा क्या होगा? एक नगर में एक वृद्ध जौहरी रहता था। वह रत्नों की परीक्षा करने में बहुत होशियार था। एक बार एक परदेशी जौहरी एक मूल्यवान रत्न लेकर आया और वहाँ के राजा से कहा कि आप अपने यहाँ के जौहरियों से इसका मूल्यांकन कराइये। राजा ने जौहरियों को बुलाकर आदेश दिया, किन्तु कोई भी उस रत्न का मूल्यांकन न कर सका । अन्त में जब राजा ने उस वृद्ध जौहरी को बुलवाया, तब उस वृद्ध जौहरी ने रत्न का बिलकुल सही-सही मूल्यांकन कर दिया। राजा बड़ा प्रसन्न हुआ और मंत्री जी को उन्हें इनाम देने के लिए कहा। 0 1120
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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