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________________ जैसे नाव में छिद्र के द्वारा आकर जो पानी भर जाता है, वह थोड़ा-थोड़ा करके बाहर निकाल दिया जाये, वैसे ही आत्मा के साथ बंधे हुये कर्मों को तपश्चरण द्वारा या स्थिति की पूर्णता द्वारा आत्मा से जुदा कर दिया जाता है, वह “निर्जरा, कहलाती है। जो निर्जरा तपश्चरण द्वारा की जाती है, उसे अविपाक निर्जरा कहते हैं। जो निर्जरा कर्मों की स्थिति पूर्ण होने पर होती है, उसे सविपाक निर्जरा कहते हैं। मोक्ष तत्त्व - ज्ञानावरणादि आठों कर्मों का क्षय होकर आत्मा का पूर्णतः शुद्ध हो जाना 'मोक्ष' कहलाता है। जैसे नाव में आये पानी को निकालकर नाव को साफ कर दिया जाता है, उसी प्रकार संवरपूर्वक निर्जरा होते-होते जब सब कर्मों का पूर्ण क्षय हो जाता है और केवल आत्मा का शुद्ध स्वरूप रह जाता है, तब वह आत्मा ऊर्ध्वगमन स्वभाव होने से तीनलोक के ऊपर सिद्धशिला पर जाकर विराजमान हो जाता है, इसी का नाम मोक्ष है। वे सिद्ध भगवान् अनन्त गुणों सहित व जन्म-मरण आदि समस्त दोषों से रहित होते हैं। __ इन 7 तत्त्वों की सच्ची श्रद्धा करने से सम्यग्दर्शन प्रगट होता है। तत्त्वों को जाने बिना धर्म नहीं हो सकता। जिस प्रकार जड़ के बिना वृक्ष नहीं हो सकता, नींव के बिना मकान नहीं बन सकता, एक अंक के बिना शून्य का कोई महत्व नहीं होता, उसी प्रकार सम्यग्दर्शन के बिना मोक्षमार्ग नहीं हो सकता। जीवादि सात तत्त्वों का यथार्थ स्वरूप जाने बिना स्व-पर का भेदविज्ञान नहीं हो सकता कि स्व क्या है, पर क्या है। अनादिकाल से इस विकट भव-वन में क्यों भटक रहे हैं, राग-द्वेष क्यों होते हैं, अभी तक सम्यक्त्व की प्राप्ति क्यों नहीं हई, पर को अपना हम क्यों मानते रहे? इन सभी का ज्ञान इन सात तत्त्वों का अभ्यास करने पर होता है। जिस प्रकार गाय-भैंस दिनभर चारा खाती हैं, एवं रात-भर चबाती हैं (जुगाली करती हैं), ठीक उसी प्रकार इन तत्त्वों का मनन-चिंतन कर उसे अमृततुल्य समझकर पान करना चाहिए। एक बार की बात है, रात्रि में एक दिन अरविन्द कुमार के मन में बैठे-बैठे विचार आया कि ससुराल बहुत दिनों से नहीं गये, कल वहाँ जाऊँगा। वहाँ 0 1100
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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