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________________ न शीतलाश्चंदन चंद्ररश्मयो, न गाड्.गमम्भो न च हारयष्टयः । यथा मुनेस्तेऽनघवाक्यरश्मयः, शमाम्बुगर्भाः शिशिरा विपश्चिताम् ।। हे भगवान्! संसार में चंदन को शीतल माना है, चाँदनी को शीतल माना है, पर वास्तव में ये शीतलता देनेवाले नहीं हैं। इनसे आत्मा को शीतलता नहीं मिलती। ये तो शरीर मात्र को क्षणिक शीतलता देनेवाले पदार्थ हैं। संसार में एकमात्र आपकी निर्दोष पवित्र वाणी है, जो हम सब दुःख से संतप्त जीवों को शाश्वत शीतलता देनेवाली है। जिनवाणी ही हमें वास्तविक शान्ति और शीतलता देनेवाली है। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने लिखा है- "पीयूष है विषय-सौख्य विरेचना है, पीते सुशीघ्र मिटती चिर वेदना है। भाई! जरा-जनम-रोग निवारती है, संजीवनी सुखकरी जिनभारती है।" जिनवाणी तो अमृत स्वरूप है, जिसका सेवन करने से यानी जिसका अभ्यास करने से अनादिकाल से चली आ रही संसार की वेदना मिट जाती है। भौतिक-सुखों से विरक्ति हो जाती है और जनम-मरण व बुढ़ापे से सदा के लिए छुटकारा हो जाता है, शाश्वत-सुख की प्राप्ति हो जाती है। जिनवाणी के प्रति अनुराग रखने से, उसका सही-सही अभ्यास करने से हमारा जीवन सहज व सरल बनता है। जिनवाणी हमें खोटेमार्ग पर जाने से बचा लेती है। वह हमारा सही मार्गदर्शन करती है। हम अपनी अज्ञानता और आसक्ति के कारण संसार में भटक गये हैं- इस बात का अहसास जिनवाणी के अभ्यास से ही होता है। अपने स्वभाव और अपनी अनन्त-शक्ति का अनुभव हम तभी कर सकते हैं जब अपने जीवन को जिनवाणी के अनुरूप बनायें। किसी व्यक्ति को एक नक्शा मिला जिसमें किसी स्थल पर गड़े एक खजाने का विवरण है, उसने उस नक्शे का अच्छी तरह अध्ययन करके नक्शे को समझ लिया। परन्तु इतना काम करने मात्र से उसे धन की प्राप्ति नहीं हो सकेगी, धन की प्राप्ति तो उसे तभी होगी जब वह नक्शे के द्वारा इंगित किये गये स्थल पर पहुँचकर खोदना शुरू करे और तब तक खोदता चला जाये जब तक कि वह गड़े हुए धन तक न पहुँच जाये। इसी प्रकार हमें भी जिनवाणी रूपी नक्शे 0 102 0
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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