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________________ ग्वाला उसी सेठ के घर पुत्र रूप में जन्म लेकर बचपन में ही दिगम्बर दीक्षा ग्रहण कर लेता है और शास्त्रों का पारगामी मुनि बन जाता है। इस आत्मा को आवश्यक है कि ज्ञानामृत का पान करे, जिससे अज्ञानजन्य संताप शान्त हो जाये। जितना भी जीव को संताप है, वह सब अज्ञान का फल है। सम्यग्ज्ञान के प्रभाव से राग, द्वेष, मोह मिटता है, समताभाव जाग्रत होता है, आत्मा में रमण करने का उत्साह बढ़ता है, स्वानुभव जागृत होता है, यह जीवन परम आनन्दमय हो जाता है। जिसके हृदय में जिनभक्ति रूप प्रभाकर प्रकाशमान होता है, वह सम्पूर्ण जिनवाणी के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा रखता है। वह सभी आर्ष ग्रंथों पर पूर्ण श्रद्धा रखता है। चारों अनुयोग, आप्त की वाणी होने से समान रूप से सम्यग्दृष्टि के द्वारा पूज्य तथा वन्दनीय होते हैं। आचार्य कुन्दकुन्द महाराज ने 'अष्टपाहुड़' ग्रंथ में लिखा है जिणवयणमोसहमिणं, विसयसुहविरेयण अमिदभूयं । जन-मरण-वाहिहरणं, खयकरणं सव्वदुक्खाणं ||17 || यह जिनवचनरूपी औषधि विषयसुख को दूर करनेवाली है, अमृतरूप है, जरा और मरण की व्याधि को हरनेवाली है तथा सब दुःखों का क्षय करनेवाली है ||17 || __ जिनवाणी दीपक के समान है, जिसके प्रकाश में हम अपनी खोई हुई आत्म-निधि को ढूँढ़ सकते हैं। जिनवाणी हमें प्रकाश देती है, हमें ज्ञान देती है, जिसके सहारे हम भीतर झाँकें, अपने आत्मस्वरूप को पहचानें तो हमारा खोया हुआ आत्मसुख प्राप्त हो सकता है। जैसे नदी में घाट बनाये जाते हैं, जहाँ से नदी को आसानी से पार किया जा सकता है, ऐसे ही जिनवाणी संसार-सागर से पार करानेवाली है। सब जीवों का उद्धार करानेवाली और सब जीवों को दुःख से बचानेवाली है। जिनवाणी की अनेक विशेषताएँ हैं। आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने शीतलनाथ भगवान् की स्तुति करते हुये लिखा है - _0_101n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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