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________________ से भैरव पद्मावती कल्प। स्त्रीकपाले लिखेद्यंत्रं क्लीं स्थाने भुवनादिकम् । निसन्ध्यं तापयेद्रामाकृष्टिः स्यात्ख दिरामिना ॥ ५॥ भा० टो०-इस मन्त्रमें क्लोंके स्थानमें हो रखकर इसको ओके कपालपर लिखकर खदिर (खैर) की अग्निसे प्रातः, मध्याह्न और सायंकालको तपावे तो स्त्रोका आकर्षण होता है। यह आकर्षणमें ह्रीं रंजिका यन्त्र है प्रतिषेधक हु.रंजिका यन्त्र मायास्थाने च हुंकारं चिलिखेल नरचर्मणि । तापयेत्स्वेडरक्ताभ्यां पक्षाहात्प्रतिपेधकृत् ॥ ६॥ भा० टी०-इस मन्त्रमें ह्रींके स्थानमें हु रखकर इसे मनुष्यचर्म पर विष और गधेके रुधिरसे (!) लिखकर एक, पक्ष तक तपावे तो प्रतिषेधक होता है। यह प्रतिषेध कर्ममें हुं रंजिका यन्त्र है
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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