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________________ १२८] २८] हे भैरव पद्मावती कल्प मन्त्रोद्धार कर चुकने पर शेषं चार दलोंमें मकरध्वज बीज (ली) को लिखे। अन्तमें इस यन्त्रको तीनवार माया (ही) से वेष्ठित करके इसका गजवशकरण (क्रों) से निरोध करे। मूर्जे सुरभिद्रव्यविलिख्य परिवेष्टय रक्तसूत्रेण । । निक्षिप्य शिल्पभाण्डे मधुपूर्णे मोहयत्यवलाम् ॥ ४॥ भा० टी०-इस यन्त्रको सुगन्धित द्रव्योंसे भोज पत्र पर लिख कर, लाल धागेसे लपेटकर मधुसे भरे हुये कुम्हारके कच्चे बर्तन में रखनेसे यह स्त्रीको मोहित करता है। __इसके मूल मन्त्रका उद्धार 'ॐ क्लीं जये विजये अजिते अपराजिते इम] जम्भे इल्यूं मोहे म्म्ल्यूँ स्तम्भे हायूं स्तम्भिनि अमुको मोहय मोहय मम वश्यं कुरु२ मां ह्रीं क्रों वषट् ।' आकर्षणमें ही रंजिका यन्त्र यन्त्र सं० ४ यन्त्र सं०५ यन्त्र सं०६ - - - नवलामोहनवि ॥ स्कोही || लारंनिकायंत्र ॥ मकाया धकामतिर । कायंत्रः जदयूक्लिी हा दिल्यू ई ल्यूक - उपरोक्त यन्त्र उपरोक्त यन्त्रमें गोचमें फारफेर । उपरोक्त यन्त्रमें बीचमें फारफेर
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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