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________________ १३४ ] भैरव पद्मावती कल्प अथ लीलावती शतम् लीलावती लला माभा, लोहमुद्रा उपिप्रिया । लोकेश्वरी च दोषांगा, लध्वि लरकांतपालिनी ॥ १ ॥ लीला लीटांगदा लोला, लावण्या ललितार्थदा । लोभदा लावनिका, लक्षणा लक्षवर्जिता ॥ २ ॥ उर्मोवशी उदीची च, उद्योत द्योतकारिणी । उद्धारण्य धरोदय, उद्वामोद्गतिवाखिनी ॥ ३ ॥ उदाहारो तमो तंखो, उषपुधितारिणी । उत्तरोत्तर वादिन्यो, धराधरविनाशिनी ॥ ४ ॥ उत्कीलन्सुत्फी लिनी च, उत्कीर्णोकार रूपिणि । ॐ काराकार रूपा च विकार वरचारिणी ॥ ५ ॥ अमोघा खापुरी चान्ता, निरादि सुत संयुता । अनादि निधनानन्ता, चाटुली दाइनाशिनी ॥ ६॥ अपणार्द्ध चिंदुधरा, टोकाळल्पा विवांगना | आनन्दानन्ददा लोका, राष्ट्रसिद्धि प्रदानका ॥ ७ ॥ अजन्या श्रमयि मूर्ति, रजीर्णाजीणहारिणी । अह कृत्य रजा जागा, ॐकार रतिरत्पदा ॥ ८ ॥ अनुरूपार्थ मूतिघ्नी, क्रीडाकैरवपालिनी । ertioहा श्रुगा भेदा, छेद्या चाकाशगामिनी ॥ ९ ॥ अनन्तराखाधिकारा, चांगा अनन्तरनाशिनी । अलका यना लभ्या, सीता शिखरधारिणी ।। १० ॥ अहिनाभ प्रिय प्राणा, नमस्तुभ्यं महेश्वरी । कषणा धरा राग, मन्दा मोदं विधारिणी ॥। ११ ॥ इति लीलावती शतं ॥ ८ ॥
SR No.009990
Book TitleBhairav Padmavati Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMallishenacharya, Chandrashekhar Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages160
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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