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________________ दीघनिकायो-३ २६७. “पञ्चहि खो, गहपतिपुत्त, ठानेहि पुत्तेन पुरत्थिमा दिसा मातापितरो पच्चुपट्ठातब्बा - भतो नेसं भरिस्सामि, किच्चं नेसं करिस्सामि, कुलवंसं ठपेस्सामि, दायज्जं पटिपज्जामि, अथ वा पन पेतानं कालङ्कतानं दक्खिणं अनुप्पदस्सामीति | इमेहि खो, गहपतिपुत्त, पञ्चहि ठानेहि पुत्तेन पुरत्थिमा दिसा मातापितरो पच्चुपट्ठिता पञ्चहि ठानेह पुत्तं अनुकम्पन्ति । पापा निवारेन्ति, कल्याणे निवेसेन्ति, सिप्पं सिक्खापेन्ति, पतिरूपेन दारेन संयोजेन्ति, समये दायज्जं निय्यादेन्ति । इमेहि खो, गहपतिपुत्त, पञ्चहि ठानेहि पुत्तेन पुरत्थिमा दिसा मातापितरो पच्चुपट्ठिता इमेहि पञ्चहि ठानेहि तं अनुकम्पन्ति। एवमस्स एसा पुरत्थिमा दिसा पटिच्छन्ना होति खेमा अप्पटिभया । १४४ २६८. “पञ्चहि खो, गहपतिपुत्त, ठानेहि अन्तेवासिना दक्खिणा दिसा आचरिया पच्चुपट्ठातब्बा- उट्ठानेन उपट्ठानेन सुस्सुसाय पारिचरियाय सक्कच्चं सिप्पपटिग्गहणेन । इमेहि खो, गहपतिपुत्त, पञ्चहि ठानेहि अन्तेवासिना दक्खिणा दिसा आचरिया पच्चुपट्ठिता पञ्चहि ठानेहि अन्तेवासि अनुकम्पन्ति - सुविनीतं विनेन्ति, सुग्गहितं गाहापेन्ति, सब्बसिप्पस्सुतं समक्खायिनो भवन्ति, मित्तामच्चेसु पटियादेन्ति, दिसासु परित्ताणं करोन्ति । इमेहि खो, गहपतिपुत्त, पञ्चहि ठानेहि अन्तेवासिना दक्खिणा दिसा आचरिया पच्चुपट्ठिता इमेहि पञ्चहि ठानेहि अन्तेवासि अनुकम्पन्ति । एवमस्स सा दक्खिणा दिसा परिच्छन्ना होति खेमा अप्पटिभया । २६९. “पञ्चहि खो, गहपतिपुत्त, ठानेहि सामिकेन पच्छिमा दिसा भरिया पच्चुपट्ठातब्बा- सम्माननाय अनवमाननाय अनतिचरियाय इस्सरियवोस्सग्गेन अलङ्कारानुप्पदानेन । इमेहि खो, गहपतिपुत्त, पञ्चहि ठानेहि सामिकेन पच्छिमा दिसा भरिया पच्चुपट्ठिता पञ्चहि ठानेहि सामिकं अनुकम्पति - सुसंविहितकम्मन्ता च होति, सङ्गहितपरिजना च, अनतिचारिनी च, सम्भतञ्च अनुरक्खति, दक्खा च होति अनलसा सब्बकिच्चेसु । इमेहि खो, गहपतिपुत्त, पञ्चहि ठानेहि सामिकेन पच्छिमा दिसा भरिया पच्चुपट्ठिता इमेहि पञ्चहि ठानेहि सामिकं अनुकम्पति । एवमस्स एसा पच्छिमा दिसा पटिच्छन्ना होति खेमा अप्पटिभया । (३.८.२६७-२७०) २७०. “पञ्चहि खो, गहपतिपुत्त, ठानेहि कुलपुत्तेन उत्तरा दिसा मित्तामच्चा पच्चुपट्टातब्बा - दानेन पेय्यवज्जेन अत्थचरियाय समानत्तताय अविसंवादनताय । इमेहि खो, गहपतिपुत्त, पञ्चहि ठानेहि कुलपुत्तेन उत्तरा दिसा मित्तामच्चा पच्चुपट्ठिता पञ्चहि Jain Education International 144 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.009978
Book TitleDighnikayo Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVipassana Research Institute Igatpuri
PublisherVipassana Research Institute Igatpuri
Publication Year1998
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Buddhism
File Size11 MB
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