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________________ [२०] लो। इस पर कितनों ने सौ, हजार अथवा सत्तर हजार देवता देखे; कितनों ने सौ हजार देवता देखे और कितनों ने सभी दिशाओं को अनंत देवों से आकीर्ण पाया । तब भगवान ने यह सब जान कर श्रावकगण को वहां पर एकत्रित देवशरीरधारियों के नाम, इत्यादि का परिचय दिया । इंद्र और ब्रह्मा के साथ सभी देवों के आगमन पर मार सेना भी वहां पर आ धमकी और सबको राग से वश में करने का यत्न करने लगी । इतने में क्रोध से आगबबूला हुआ मार भी वहां पर आ पहुँचा । यह सब अपनी अभिज्ञा से जान कर भगवान ने श्रावकों को सचेत किया- 'मार सेना आयी हुई है। इसे विवेकपूर्वक जान लो ।' भगवान की बात सुन कर सभी श्रावक वीर्यपूर्वक सचेत हो गये। उन वीतराग भिक्षुओं के आगे मार-सेना भाग छूटी और किसी एक का भी बाल बांका नहीं कर पायी । ८. सक्कपञ्हसुत्त एक समय भगवान मगध में वेदियक पर्वत की इन्दशाल - गुहा में विहार कर रहे थे । उस समय देवेंद्र सक्क तावतिंस देवों के साथ गंधर्वपुत्र पञ्चसिख को आगे कर उनके दर्शनार्थ गये । सक्क ने पञ्चसिख से कहा कि ध्यानमग्न, समाधिस्थ तथागत के पास मेरे जैसा कोई सहसा नहीं जा सकता। अतः पहले आप जा कर उन्हें प्रसन्न करें । हम आपके पीछे उनके दर्शनार्थ आयेंगे । इस पर भगवान से न बहुत दूर, न बहुत निकट रह कर पञ्चसिख अपनी बेलुवपण्डु वीणा बजाने लगा और बुद्ध, धर्म, संघ, अरहंत तथा भोग-संबंधी गाथाएं गाने लगा । गाथाओं के पूरा होने पर भगवान ने उससे पूछा तुमने इन्हें कब रचा था । पञ्चसिख ने इसका विवरण दिया । तत्पश्चात सक्क भी तावतिंस देवों के साथ भगवान के समीप चले आये । सक्क ने भगवान से कहा मैंने अपने से पहले उत्पन्न हुए देवों को यह कहते सुना है कि जब कोई तथागत संसार में उत्पन्न होते हैं तब देवलोक भरने लगते हैं और असुरलोक क्षीण होने लगते हैं । अब मैंने इसे अपनी Jain Education International 30 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.009977
Book TitleDighnikayo Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVipassana Research Institute Igatpuri
PublisherVipassana Research Institute Igatpuri
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageSanskrit
ClassificationInterfaith & Buddhism
File Size13 MB
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