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________________ सद्धर्मसंरक्षक कि "यह बात अच्छी नहीं है। कल प्रात:काल ये सब मिल कर बडा भारी उपद्रव करेंगे । यदि हम बूटेराय का पक्ष लेंगे तो हमारी दाल न गल पायेगी । ये तो बहुत हैं और हम इतने थोडे हैं कि आटे में नमक बराबर भी नहीं है । इनके सामने हमारी कुछ पेश न जावेगी । हमें पुजेरे-पुजेरे ( मूर्तिपूजक - मूर्तिपूजक) कहकर इस क्षेत्र में तथा अन्य क्षेत्रों में हमारी इज्जत आबरू पर पानी फेर देंगे। हमारा यहाँ रहना दूभर हो जावेगा । बूटेराय ने तो यहाँ बैठे नहीं रहना, हमने तो यहीं रहना है। समुद्र में रहकर मगरमच्छ से वैरविरोध करने से हमारी ही हानि है। यदि बूटेराय के साथ कोई दुर्घटना हो जावेगी तो यह भी बड़ा अनुचित है। संघ में वैर-विरोध की आग भड़क उठेगी, संघ में परस्पर फूट पड़ जाने से कोई भी साधु-साध्वी हमारे नगर में नहीं आवेगा । इससे हमें धर्मध्यान में विरह पड जावेगा। इसलिए अभी रात को ही बूटेरायजी को जाकर कहना चाहिये कि आपको प्रातः काल में सूर्य उदय होने से दो घड़ी पहले ही तडके यहाँ से विहार कर जाना चाहिए और शहर से बाहर जाकर जहाँ पर यहाँ के लोगों को पता न लगने पावे, प्रतिक्रमण आदि आवश्यक क्रिया करनी चाहिये ।" ऐसा निश्चय करके ये भाई रात को ही आपके पास आये और वन्दना - नमस्कार करके हाथ जोड़कर गद्गद् स्वर में बोले - "गुरुदेव ! हम तो आपके परम भक्त हैं, किन्तु हमारा यहाँ कोई बस नहीं चल रहा है।" इस प्रकार इन लोगों ने आपसे षड्यंत्ररचना की सब कहानी कह सुनाई । तब आपने कहा "भाइयों डर के मारे भयभीत होकर हम कहाँ-कहाँ भागते-छिपते फिरेंगे ? और कहाँ तक बच पावेंगे ? यदि ८० Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [80]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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