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________________ उत्कट विरोध का डटकर मुकाबिला सब बातें आप अच्छी तरह से सोच-समझ लीजिये ! पर मेरा व्यक्तिगत मत यह है कि अब आपको मुँहपत्ती बाँधनी नहीं चाहिये। यदि बाँधोगे तो लोग यही कहेंगे कि "बूटेराय झूठा था तभी तो इसने फिर मुँहपत्ती बाँध ली है। सच्चा होता तो क्यों बाँधता ?" आप जैसे सत्यवीर महापुरुष विरले ही होते हैं।" इस प्रकार मोहोरसिंह आपकी श्रद्धा तथा निश्चय का समर्थन करके अपने साधुओं के पास जाकर कहने लगा कि- "मैंने बूटेराय को बहुत समझाया है। नम्रता से भी समझाया है, कठोर शब्दों में भी कहा है, पर वह बडा हठी है, अपने निश्चय पर अडिग है। थोडा भी टस से मस नहीं हुआ। मैं हार थककर अपनी दुकान पर चला गया था, अब क्या करना?" साधुओं ने कहा कि "पक्का हठी है और जिद्दी है। यह नरमाई से माननेवाला नहीं है। अब तो सख्ती से ही काम लेना चाहिये । इस बार यह शिकार हमारे हाथ से छूटने न पावे । इसका वेष उतार कर एकदम बाहर निकाल देना चाहिए। इसके सिवाय और कोई उपाय नहीं है।" दूसरे दिन अम्बाला शहर में उपस्थित स्थानकवासी सब साधु-साध्वीयां एक स्थानक में एकत्रित हुए । उन सबने अपनेअपने रागी श्रावकों को बुलाकर एकत्रित किया। इस विराट संमेलन में सबने मिलकर एकमत होकर निर्णय किया कि "बूटेराय को कल प्रातःकाल ही प्रतिक्रमण करते हुए जा दबोचो । यदि मुहपत्ती बाँधना मान लेवे तो ठीक है, नहीं तो उसके वेष को छीनकर नंगा करके मार-पीटकर बाहर निकाल भगा देवेंगे।" यह निर्णय सुनकर मोहोरसिंह, सरस्वतीदास आदि जिन भाइयों का आपसे अनुराग था, उन सबने एकांत में मिलकर सोचा Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [79]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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