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________________ पूज्य बुद्धिविजयजी के जीवन की मुख्य घटनाएं २१७ ३- वि० सं० १८७८ (ई० स० १८२१) में पंद्रह वर्ष की आयु में संसार से वैराग्य, दस वर्ष तक सद्गुरु की खोज । ४- वि० सं० १८८८ (ई० स० १८३१) में लुंकामती साधु नागरमल्लजी से स्थानकमार्गी साधु की दीक्षा दिल्ली में, नाम ऋषि बूटेरायजी । आयु २५ वर्ष । आप बालब्रह्मचारी थे। ५- वि० सं० १८८८ से १८९० (ई० स० १८३१ से १८३३) तक गुरुजी के साथ रहे। दिल्ली में तीन चौमासे किये। थोकडों और आगमों का अभ्यास किया । ६- वि० सं० १८९१ (ई० स० १८३४) में तेरापंथी-मत (स्थानकमागियों के उपसंप्रदाय) के आचार-विचारों को जाननेसमझने के लिये उसकी आचरणा सहित तेरापंथी साधु जीतमलजी के साथ जोधपुर में चौमासा । ७- वि० सं० १८९२ (ई० स० १८३५) में पुनः वापिस अपने दीक्षागुरु स्वामी नागरमल्लजी के पास आये और वि० सं० १८९२१८९३ (ई० स० १८३५-३६) दो वर्ष दिल्ली में ही गुरुजी के अस्वस्थ रहने के कारण उनकी सेवा-शुश्रूषा-वैयावच्च में व्यतीत किये । वि० सं० १८६३ में दिल्ली में गुरु का स्वर्गवास । ८- वि० सं० १८९५ (ई० स० १८३८) में अमृतसर निवासी ओसवाल भावडे अमरसिंह का दिल्ली में लंकामती ऋषि रामलाल से स्थानकमार्गी साधु की दीक्षा ग्रहण तथा आपकी ऋषि रामलाल से "मुखपत्ती मुंह पर बाँधना शास्त्रसम्मत नहीं" के विषय पर चर्चा । विचारों में हलचल की शुरूआत । ९- वि० सं० १८९७ (ई० स० १८४०) में गुजरांवाला (पंजाब) में शुद्ध सिद्धान्त (सद्धर्म) की प्ररूपणा का आरंभ, Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [211
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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