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________________ सद्धर्मसंरक्षक नहीं होंगे? इक्कीस हजार वर्षों तक श्रीवीतराग प्रभु का धर्म चालु रहना है। पर यहां पंजाब में तो कोई ऐसा मत दिखलाई नहीं देता । मुझे शुद्ध वीतराग-मार्ग की प्राप्ति कैसे हो ?" अब आपने बडी लगन के साथ आगमों का अभ्यास शुरू कर दिया । जैसे-जैसे आप सूत्रों-आगमों को पढते गये और सुनते गये, वैसे-वैसे आपकी श्रद्धा सूत्रों-आगमों पर दृढ होती गई । आपने सोचा कि "स्थानकमार्गी तथा तेरापंथी दोनों सूत्रों के पाठ दिखलाते हैं और इन से अपने अपने मत की पुष्टि करते हैं, एक-दूसरे को मिथ्या बतलाते हैं। इनमें सच्चा कौन और झूठा कौन है ? इसका निर्णय तो तभी हो सकेगा जब मुझे स्वयं सूत्रों का ज्ञान होगा। अतः मुझे स्वयं सूत्रों का अभ्यास करना चाहिये । परन्तु पढना किसके पास? गुरु बिना सूत्रों का अर्थ कौन पढावे? इस लिए मुझे गुरु के पास रहना चाहिये । सूत्रों को पढे बिना गुरु-कुगुरु, सुदेव-कुदेव, सुधर्म-कुधर्म की परख संभव नहीं है। इन मत-मतांतरों में से किस की मान्यता सच्ची है और वीतराग की आज्ञा के अनुकूल है ? इसे निश्चय रूप से गुरू गौतम आदि गणधरदेव ही कह सकते हैं, परन्तु वे तो इस समय विद्यमान नहीं है। इसलिये इस समय तो जिन्होंने मुझे (मूंडा) दीक्षा दी है उन्हीं गुरु के पास मुझे जाना चाहिये ।" तेरापंथियों के साथ जोधपुर में चौमासा करके आप १. ऋषि बूटेरायजी के समय पंजाब में स्थानकमार्गी ऋषि तथा चैत्यवासी यति (पूज) ये दोनों ही जैनधर्म के त्यागीवर्ग में थे। परन्तु संवेगी (तपागच्छ आदि के श्वेताम्बर) साधु का विहार न होने के कारण उनके सामने आगमानुकूल समाचारी पालन करनेवाला साधु-साध्वी कोई न था। शुद्ध सामाचारी पालन करनेवाला कोई भी साधु दृष्टिगोचर न होने से आपकी यह धारणा होने लगी कि आजकल आगमानुकूल कोई भी जैन साधु-साध्वी नहीं है। Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [14]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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