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________________ मुनि श्री आत्मारामजी १८३ आपको क्रांतिप्रधान धार्मिक आन्दोलन में इस मुखवस्त्रिका ने भी काफी सहायता दी है। पर अब इसको मुह पर बाधने की क्या जरूरत है? इस प्रकार वार्तालाप करने के बाद सब १६ साधुओं ने अपनीअपनी मुँहपत्ती का डोरा तोडकर मुख पर से अलग कर दिया। ___ यहाँ से विहार करते हुए आप सब साधु पाली (राजस्थान) में पधारे । जब अहमदाबाद के नगरसेठ प्रेमाभाई हेमाभाई तथा सेठ दलपतभाई भगुभाई को आपके पधारने के समाचार मिले, तब उन्होंने दो आदमियों को आप मुनिराजों को अहमदाबाद पधारने की विनती करने के लिये भेजा । वे दोनों श्रावक विहार में अहमदाबाद तक आपके साथ ही रहे। आपने पंजाब से रवाना होने से पहले, आपके साथ सब मुनिराजों ने सर्वसम्मति से जो कार्यक्रम निश्चित किया था, उसमें मुख्य तीन बातें थी (१) लुंकामती के साधु के स्वकल्पित वेष को त्याग कर प्राचीन जैन परम्परा के साधुवेष को विधिपूर्वक धारण करना । (२) श्रीशत्रुजय, गिरनार, आबु, तारंगा आदि प्राचीन तीर्थों की यात्रा करना। (३) पंजाब में वापिस आकर शुद्ध जैन धर्म का प्रचार तथा प्रसार करना। इस सद्भावना के साथ मुनिश्री आत्मारामजी महाराज ने अपने साथी १५ मुनियों के साथ अहमदाबाद की तरफ विहार कर दिया । पाली (राजस्थान) में श्रीनवलखा पार्श्वनाथ, वरकाणा में Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [183]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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