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________________ आगमानुकूल चारित्र पालने की धून नागरमल्लजी व्याख्यान में श्रीआचारांग सूत्र का वांचन करते थे । इसके समाप्त होने पर श्रीसूयगडांग सूत्र का वांचन करते थे । आपने इन दोनों सूत्रों को गुरुमुख से बड़े ध्यानपूर्वक तन्मयता से सुना । इन सूत्रों को सुनने के बाद आपको ऐसा प्रतीत हुआ कि इन आगमों में बतलाये हुए जैनसाधु के आचार के साथ ऋषि नागरमल्लजी आदि इन स्थानकमार्गी साधुओं के स्वरूप का मेल नहीं खाता । इन दोनों में बहुत अन्तर है। पर आपको इसके भेद का कुछ समाधान न हो पाया । कारण यह था कि पंजाब में इस समय स्थानकमार्गी साधु (जो ढूंढियों के नाम से प्रसिद्ध थे) तथा चैत्यवासी यति (पूज) दोनों प्रकार के ही जैन त्यागी साधु के नाम से विद्यमान थे । एक तरफ स्थानकमार्गी साधुओं के आचार, वेश आदि आगमानुकूल प्रतीत नहीं हुए, तो दूसरी तरफ यतियों के आचार-व्यवहार भी आगमों के प्रतिकूल प्रतीत हुए। आगमानुकूल चारित्र पालने की धून ऋषि बूटेरायजी के सामने एक विकट समस्या थी । आप सोचने लगे कि "ये आगमशास्त्र सुनने से ऐसा प्रतीत होता है कि इन सूत्रों का कर्ता कोई उत्कृष्ट चरित्रवान और उत्कृष्ट ज्ञानवान सत्पुरुष है। इनके बतलाये हुए सिद्धातों के आराधक वर्तमान काल में कहां विचरते होंगे उनकी अवश्य खोज करनी चाहिए। जैन आगमों में तो कहा है कि श्रीमहावीर प्रभु का शासन इक्कीस हजार वर्ष तक विद्यमान रहेगा, इसलिये आगमानुकूल चारित्रधारी साधुओं का अभाव तो संभव नहीं है। अतः अब मुझे उनकी खोज कर अवश्य उनसे मिलना चाहिये।" आपके मन में ऐसी ईहा (इच्छा) हुई। Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [11]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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