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________________ यतियों और श्रीपूज्यों का जोर १३९ पूज्य बूटेरायजी महाराज के शिष्यों की संख्या ३५ कही जाती है इस विषय में आगे चलकर हम प्रकाश डालेंगे। वर्तमानकाल में बम्बई, अहमदाबाद, पालीताना आदि क्षेत्रों में संवेगी साधु-साध्वीया बहुत बड़ी संख्या में रहते हैं जिस से उपकार अत्यन्त अल्प हो रहा है। साधुओं के प्रति लोगों की रुचि घटती है तथा गृहस्थों का प्रतिबन्धन बढता जा रहा है। ऐसा उस समय नहीं था। यह बात वर्तमान में साधु-समुदाय की आगेवानी करनेवाले मुनिराजों को अवश्य ध्यान में रखनी चाहिये । आजकल विहार में सुगमता होने पर भी क्यों प्रमाद किया जाता है? यह बात समझ में नहीं आती। विहार करने की अत्यन्त कठिनाइयों के समय भी जिन्होंने उपकार-बुद्धि से परिषहों और उपसर्गों को सहन कर असह्य कष्टों को उठाकर भी कंटकाकीर्ण क्षेत्रों में विहार किया है उनका उदाहरण लेकर आप लोग स्वयं भी जिनशासन की प्रभावना के साथ आत्मकल्याण की ओर लक्ष्य दें। ऐसी आधुनिक-वर्तमान मुनियों से हमारी विनम्र विनती है। कहा भी है कि - बहता पानी निर्मला, खडा गंदीला होय । साधु तो चलता भला, दाग न लागे कोय ॥ उत्तम पद की प्राप्ति के लिये कष्ट सहन करने की आवश्यकता है। दूध भी आग पर चढे बिना मावा (खोया) नहीं बनता । दही भी मंथन से उत्पन्न कष्टों को सहन करता है तभी उसमें से मक्खन निकलता है और मक्खन भी आग पर तपने से व्यथा पाकर घी बनता है। इसलिये कष्टों को सहन किये बिना महत्त्वता की प्राप्ति कभी नहीं होती । पूर्वकाल में भी अनेक महात्माओं ने शरीर, इन्द्रियों और मन का दमन करके अनेक उपसर्गों और कठोर परिषहों Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [139]]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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