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________________ ६ सद्धर्मसंरक्षक से जूंझते देखा है। आपने ही मुझे जन्मघुटी से धर्मसंस्कार दिये है। आपकी महती कृपा से ही मुझे सुदृढ वैराग्यभाव जाग्रत हुए हैं आपने मुझे साधु-संतों की संगत में उठने-बैठने की सदा प्रेरणा | की है और आपने ही मुझे उस महात्मा के वचनों का सदा स्मरण कराया है 'तुम तो साधु हो जाओगे' वीर हकीकतराय ने अपने । धर्म की रक्षा के लिये यवनों के द्वारा फांसी पर चढना स्वीकार किया था। पूरणभक्त ने अपने चरित्र की रक्षा के लिये संन्यास ग्रहण किया था । ये भी तो इस वीरभूमि पंजाब के ही सपूत थे न ? आप भी अपने पुत्र को आत्मकल्याण की तरफ अग्रेसर करने में सच्ची जननी कहलाने का गौरव प्राप्त कर धन्य हो जाओगी। कृपा कर मुझे साधु बनने की आशा देकर मुझे और अपने आप को कृतार्थ करो। वह माता धन्य है जो पुत्र की सदा कल्याण-कामना चाहत रहती है।" पुत्र की दृढता के सामने माता नतमस्तक हो गई । गहरे विचारों में डूब गई । अन्तर्द्वन्द्व छिड गया। एक तरफ स्वार्थ है, दूसरी तरफ पुत्र की आत्मा का उद्धार है अन्त में साहसपूर्वक बोल उठी “बेटा! साधु होने जा तो रहे हो, पर एक बात ध्यान में अवश्य रखना । तुम एक घर छोड कर दूसरा घर मत बसा लेना अच्छी तरह देखकर त्यागी, बैरागी, पंडित, चरित्रवान गुरु को धारण करना। पहले गुरु को खोज कर आओ, पश्चात् मुझे पूछकर - आज्ञा लेकर साधु होना । " 1 इस गाँव में जैनों के घर न होने से कोई जैन साधु न आता था । सब अन्यमतावलम्बी ही रहते थे । इस लिये यहाँ सद्गुरु का Shrenik/D/A-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013) / (1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [6]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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