SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शिक्षाप्रद एक घटना १०७ संवेगी मुनि का वेष ग्रहण किया । वि० सं० १९१३ (ई० स० १८५६) का चतुर्मास मुनिश्री बुद्धिविजयजी तथा मुनिश्री वृद्धिविजयजी ने अहमदाबाद में किया और मुनिश्री मुक्तिविजयजी ने भावनगर में किया । आप तीनों पंजाबी मुनिराजों के बडी दीक्षा के समय नाम-परिवर्तन करने पर भी आप लोग अपने साधुमार्गी अवस्था के मूल नामों से ही प्रसिद्ध रहे। अतः हम भी इनका मूल नामों से ही उल्लेख करेंगे। शिक्षाप्रद एक घटना जब वि० सं० १९११ (ई० स० १८५४) में भावनगर के चौमासे के बाद आप पालीताना की यात्रा करके लींबडी पधारे थे और वहाँ पर मूलचन्दजी का स्वास्थ्य बिगड जाने के कारण स्थिरता करनी पड़ी थी। उस समय अकस्मात एक घटना घटी। यहाँ पर एक श्रावक था वह स्वयं भी बेंगन खाता था और स्थानकमार्गी साधुओं को भी आहार में देता था । एकदा मूलचन्दजी महाराज गोचरी के लिए उसके घर गए और उनके इन्कार करने पर भी उसने एकदम बेंगन का साग वहोरा दिया । आपके पास एक छोटा पात्र था, उसी में सब दाल-साग आदि मिले हुए थे। इसलिए बेंगन की सब्जी को इसमें से अलग करना सम्भव न था । आपने गुरुदेव को यह घटना कह सुनाई। __ गुरुदेव बोले - "मूला ! इसमें श्रावक का कोई दोष नहीं है। इन लोगों को सच्चे उपदेशक तो मिलते नहीं हैं, इसीका यह परिणाम है। यदि इस भूल का सुधार करना हो तो सच्चे त्यागी साधु उपदेशक तैयार करने चाहिए । जिसके उपदेशक बलवान उसका धर्म Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI/ Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013) (2nd-22-10-2013) p6.5 [1071
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy