SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०६ सद्धर्मसंरक्षक संवेगी दीक्षा ग्रहण अहमदाबाद में रूपविजय के डेले में मुनि सौभाग्यविजयजी तथा मुनि मणिविजयजी तपागच्छ के दो मुनिराज विराजमान थे । उस समय संवेगी साधुओं की संख्या एकदम कम थी । कुल २०-२५ की संख्या थी । मुनि बूटेरायजी ने भावनगर के चौमासे में तपागच्छ की बडी दीक्षा लेने का निश्चय किया था और अब आप योग्य गुरु की खोज में थे। आपने मुनि मणिविजयजी को भद्र प्रकृति तथा शांतस्वभावी जानकर उनके पास संवेगी दीक्षा लेने का निश्चय किया । पश्चात् आपने इस निर्णय का जिकर नगरसेठ हेमाभाई से किया । नगरसेठ को भी यह निर्णय बहुत पसन्द आया । शुभ मुहूर्त में वि० सं० १९१२ (ई० स० १८५५) को मुनि मणिविजयजी ने तीनों पंजाबी साधुओं को बडी दीक्षा दी । बूटेरायजी को मणिविजयजी ने अपना शिष्य बनाया और आपका नाम बुद्धिविजयजी रखा । मूलचन्दजी और वृद्धिचन्दजी को बुद्धिविजयजी का शिष्य बनाया। इनके नाम क्रमशः मुक्तिविजयजी और वृद्धिविजयजी रखे। दीक्षा लेकर आप तीनों मनि उजमबाई की धर्मशाला में आ गये और वहीं वि० सं० १९१२ (ई० स० १८५५) का चौमासा किया । संवेगी मुनि श्रीबुद्धिविजयजी अब से मुनिराज श्रीबुद्धिविजयजी, श्रीमुक्तिविजयजी, श्रीवृद्धिविजयजी ने श्वेताम्बर तपागच्छ के संवेगी साधु की दीक्षा ग्रहण कर शुद्ध चरित्र-पालन करनेवालों की पहचान के लिए मुनि सत्यविजयजी गणि द्वारा चालू की हुई पीली चादर तथा श्वेताम्बर Shrenik/DIA-SHILCHANDRASURI / Hindi Book (07-10-2013)/(1st-11-10-2013)(2nd-22-10-2013) p6.5 [106]
SR No.009969
Book TitleSaddharma sanrakshaka Muni Buddhivijayji Buteraiji Maharaj ka Jivan Vruttant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherBhadrankaroday Shikshan Trust
Publication Year2013
Total Pages232
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy