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________________ का प्यासा है। इसलिए चंचल है। जब तक हम विराट, जब तक हम अनंत, जब तक हम पूर्ण, जब तक हम परम के सान्निध्य में उसे न ले जाएं, तब तक मन चंचल होगा, मन विचलित होगा; मन भागेगा और दौड़ेगा। मन दुखी होगा, मन संताप से भरा रहेगा। एक एंग्विश, एक पीड़ा निरंतर पकड़े ही रहेगी। ___ मनुष्य के जीवन का दुख एक ही केंद्र पर है। मनुष्य, जिस बात को पाने से प्यास उसकी तृप्त होगी, वह हम उसे नहीं दे रहे हैं, हम कुछ और दे रहे हैं। हम कुछ और दे रहे हैं, जो तृप्ति न देगा! और हम उससे वंचित किए हैं, जो तृप्ति बन सकता है! और अगर यह तृप्ति न हो तो हम लाख उपाय करें, लाख अर्जित करें, लाख व्यवस्था, समृद्धि जमा लें, हम शांति को, आनंद को नहीं पा सकते हैं। धर्म त्याग करने से नहीं होता है। धर्म छोड़ने से नहीं मिलता है। धर्म जीवन से पलायन करने वाले को नहीं मिलता है। धर्म तो पाने पर मिलता है, परिपूर्ण को पाने पर मिलता है। धर्म तो परिपूर्ण को उपलब्ध करने को कहता है। गलत होंगे, जो समझते हैं, धर्म परार्थ है। धर्म से ज्यादा स्वार्थ इस जगत में कुछ भी नहीं है। भ्रांत होंगे वे, जो समझते हैं, धर्म परार्थ है। धर्म से अधिक स्वार्थ इस जगत में कुछ भी नहीं है। महावीर और बद्ध से ज्यादा स्वार्थ को उत्पन्न इस जगत में दसरे नहीं हैं। स्वार्थ का अर्थ है : स्व को परिपूर्ण जहां अर्थ उपलब्ध होता है। स्वार्थ का अर्थ है : जहां मेरी सत्ता पूरे प्रयोजन को, पूरी अर्थवत्ता को उपलब्ध हो जाए, जहां मैं अपने को उपलब्ध हो जाऊं। हम एक अर्थ में स्वार्थी नहीं हैं। हमें स्व की कोई चिंता भी नहीं है, हमें स्व से कोई प्रयोजन नहीं है! हम उन चीजों के पीछे दौड़ रहे हैं, जिन्हें मृत्यु छीन लेगी और समाप्त कर देगी। हम अत्यंत निःस्वार्थी लोग हैं। हम उन चीजों पर जीवन को व्यय कर रहे हैं, जो हमारी सत्ता का अंग नहीं बन सकतीं, जो हमारे स्वरूप का उदघाटन नहीं हो सकतीं। महावीर और बुद्ध और ईसा और कृष्ण उसको पाने में संलग्न हैं, जिसे मृत्यु भी जला नहीं सकेगी। वे शायद उस संपत्ति को उपलब्ध कर रहे हैं। हम जिसे संपत्ति कह रहे हैं, वह संपत्ति नहीं है। नानक लाहौर के पास एक गांव में ठहरे थे। एक व्यक्ति ने उनसे कहा, मैं कुछ आपकी सेवा करना चाहता हूं। बहुत संपत्ति मेरे पास है। आपके उपयोग में आ जाए तो अनुग्रह होगा। नानक कई बार उसे टालते गए। एक बार रात्रि को उसने दोबारा अपनी प्रार्थना दोहराई, तो उस व्यक्ति को एक कपड़े सीने की सुई दे दी। कपड़े सीने की सुई देकर कहा, इसे रख लो और जब हम दोनों मर जाएं तो इसे वापस लौटा देना। वह आदमी कुछ चौंका होगा, क्या नानक का दिमाग कुछ खराब है! चौंका होगा कि इतने लोगों के सामने असंगत और व्यर्थ की बात कहते हैं! इस सुई को मृत्यु के बाद कैसे लौटाया जा सकेगा! लेकिन सबके सामने कुछ कहना संभव नहीं हुआ। फिर उसी ने तो बार-बार उनसे आकांक्षा की थी कि कोई सेवा! और सेवा जो दी है, उसे एकदम अस्वीकार करते नहीं बन पड़ा। वह गया, रात भर सोचता रहा, विचार करता रहा। कोई मार्ग उसे दिखाई न पड़ा कि सुई मृत्यु के पार कैसे जा सकेगी। वह पांच बजे, चार बजे सुबह ही नानक के पैरों पर गिर पड़ा और
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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