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________________ मैंने पूछा कि वे मुझे क्यों पत्थर मारेंगे? तो मुझे बताया गया, मुझे कुछ बातें बताई गईं, उनका मैं उल्लेख करूं, उनके माध्यम से महावीर को समझना आसान होगा। मुझे बताया गया कि मैं जब कहता हूं महावीर, तो मैं भगवान नहीं जोड़ता । मैंने कहा, मेरा प्रेम भगवान जैसे औपचारिक शब्द को जोड़ने को राजी नहीं होता । जिनको हम प्रेम करते हैं, जितना हम उनको प्रेम करते हैं उतनी ही औपचारिक बातें उनके संबंध में व्यर्थ हो जाती हैं। अगर महावीर को स्मरण करते वक्त इतना प्रेम न भरता हो कि हम उन्हें तू कह कर बुला सकें, तो हममें प्रेम ही नहीं है। इसलिए मैंने कहा, मैं तो उनको भगवान नहीं कहूंगा। भगवान न कहने का मतलब यह है कि मैं उनको भगवान जानता हूं। भगवान न कहने का मतलब यह है कि मैं पहचानता हूं कि वे भगवान हैं। इसे कहने और दोहराने की बात नहीं है, इसे हृदय में समझने और पहचानने की बात है । जो इसे कहेंगे केवल, इसे दोहराते रहेंगे मंत्र की तरह, इनके दोहराने से कुछ होने का नहीं है। मुझे कहा गया कि मैं जो कहता हूं, वह शास्त्र के विपरीत है। मैंने कहा, महावीर की आस्था शास्त्र में नहीं है। महावीर की आस्था स्वयं में है । और अगर महावीर की कोई क्रांति है बहुमूल्य, तो वह यह है कि उन्होंने इस मुल्क को शास्त्र से मुक्त करने की कोशिश की। महावीर के समय शास्त्र सब कुछ थे, वेद सब कुछ थे। महावीर ने कहा, वेद नहीं, शास्त्र नहीं, स्वयं का सत्य, स्वयं का अनुभव अर्थपूर्ण है। महावीर ने कहा, हम शब्दों को न मानेंगे, हम तो अनुभूतियों को मानेंगे। लेकिन हम ऐसे पागल हैं कि जिस महावीर ने यह कहा हो कि शास्त्र नहीं है मूल्यवान, स्वयं का अनुभव और स्वाद मूल्यवान है, हम उनकी ही वाणी का शास्त्र बना लेंगे और उसको पूजेंगे ! यह घटना सारी जमीन पर घटी है - महावीर के अनुयायियों में ही नहीं, सारी जमीन पर - कृष्ण के अनुयायियों में, क्राइस्ट के अनुयायियों में या मोहम्मद के अनुयायियों में । मोहम्मद ने कहा है शांति और मोहम्मद के इस्लाम धर्म का अर्थ भी होता है शांति का धर्म। लेकिन उनके भक्तों ने क्या किया? उनके भक्तों ने जितनी अशांति दुनिया में फैलाई और किसी ने नहीं फैलाई! क्राइस्ट ने कहा है कि तुम्हारे एक गाल पर चांटा मारे, तुम दूसरा उसके सामने कर देना । लेकिन क्राइस्ट के मानने वालों ने जितने गालों पर चांटे मारे हैं, उनका कोई हिसाब नहीं है! और क्राइस्ट के मानने वालों ने जितनी छातियों पर संगीनें कोंची हैं और जितनी छातियों पर पैर रौंदे हैं, उसका कोई मुकाबला नहीं है! बहुत आश्चर्यजनक मालूम होता है। महावीर ने कहा है, प्रेम ! और अगर महावीर का कोई भक्त कहता हो कि हम किसी को पत्थर मारेंगे, तो विचारणीय हो जाएगा । और महावीर ने कहा है, अपरिग्रह ! और महावीर के भक्तों के पास परिग्रह ही परिग्रह इकट्ठा हो, तो विचारणीय हो जाएगा। और महावीर ने कहा है, स्वयं का अनुभव ! और कोई महावीर की वाणी को ही अगर वेद बना दे तो गलती हो जाएगी, तो विचारणीय हो जाएगा। मैं आपको कहूं कि दुनिया में इस धर्म के जितने मानने वाले हैं, उनमें से मुश्किल से कोई अनुयायी है। जिनकी आप पूजा करते हैं, उनके ही आप दुश्मन हैं, उनके ही आप शत्रु हैं ! नीत्शे 75
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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