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________________ जले हों, वे कृष्ण के नाम से जले हों, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। रोशनी को पहचानें और शरीरों को छोड़ दें। मिट्टी के दीयों को छोड़ दें और प्रकाश की ज्योति को पहचानें। महावीर में वह ज्योति है। और वह ज्योति, जो लोग उस ज्योति को प्रेम करेंगे और जो लोग उस ज्योति को आमंत्रित करेंगे अपने भीतर, उनके भीतर भी जल सकती है। जिनके दीये बुझे हों, वे उन दीयों के करीब जाएं जहां रोशनी जल रही है। और जिनके भीतर के प्राण सो गए हों, वे उन प्राणों के स्रोतों से संबंधित हो जाएं जहां अनंत जीवन उपलब्ध हुआ है। उनके भीतर भी घटना घट सकती है। इस विचार से मैं आनंदित हूं कि महावीर के संबंध में थोड़ी सी बातें आपसे कहूंगा। आनंदित इसलिए नहीं हूं कि महावीर के स्मरण का कोई मूल्य है, आनंदित इसलिए हूं कि शायद वह स्मरण आपके भीतर कोई प्यास पैदा कर दे। शायद वह स्मरण आपके भीतर कोई अपमान पैदा कर दे। शायद आपको लगे कि जो महावीर के भीतर संभव हो सका, वह जब तक मेरे भीतर संभव न हो जाए, तब तक मेरी मनुष्यता अपमानित है। तब तक मैं अपनी ही आंखों में गिरा हुआ और पतित हूं। और इस जगत में अपनी आंखों में गिर जाने से बड़ी दुर्घटना दूसरी नहीं है। हम अपने संबंध में सोचेंगे तो हमें दिखाई पड़ेगा, हम अपने संबंध में विचार करेंगे और अंतर्दर्शन करेंगे तो हमें दिखाई पडेगा हम क्या हैं और हम क्या हो सकते हैं? हम क्या हो सकते हैं, इसके सबूत हैं महावीर, इसके सबूत हैं बुद्ध, इसके सबूत हैं कृष्ण। हर मनुष्य क्या हो सकता है, इसके प्रतीक हैं वे। मुझे ऐसा लगता है-आज सुबह ही मैंने कहा- मुझे ऐसा लगता है कि जब मैं आपकी तरफ देखता हूं तो मुझे ऐसा लगता है जैसे बीजों का एक ढेर लगा हो और हर बीज वृक्ष हो सकता हो, ऐसा ही मुझे लगता है। जैसे सारी जमीन पर महावीर भरे हों, लेकिन बीज की शक्ल में। और अगर चाहें वे और संकल्प की ऊर्जा उनमें जागे और अग्नि उनमें प्रज्वलित हो साधना की, तो शायद उनके बीज भी फूट जाएं और उनसे वृक्षों का जन्म हो जाए। महावीर अगर वृक्ष हैं, तो आप भी उसी वृक्ष के बीज हैं। अगर यह स्मरण, उनकी स्मृति का दिन आपके भीतर यह भाव पैदा कर दे, अगर यह खयाल पैदा कर दे, अगर यह सपना पैदा कर दे कि जो उनके लिए संभव हुआ, वह मुझे भी संभव हो सकता है, तो यह घटना आनंद की बन जाएगी। इसलिए मैंने कहा कि मैं आनंदित हूं। महावीर के संबंध में कुछ कहूं, इसके पहले थोड़ी सी बातें मुझे और कह देनी हैं। ___ मैं यहां आया, आते से ही मुझे पता चला, आते से ही मुझे बताया गया कि कुछ लोगों ने कहा है कि अगर मैं बोलूंगा, तो वे मुझे पत्थर मारेंगे। वे इसलिए पत्थर मारेंगे कि मेरी बातें महावीर के विपरीत हैं। मैंने उनसे कहा, अगर वे पत्थर मझे मारेंगे तो वे साबित करेंगे कि वे महावीर के प्रेमी नहीं हैं। अगर मेरी बातें महावीर के विपरीत हैं, तो भी मुझे पत्थर मारने का कोई कारण पैदा नहीं होता। और जो मुझे पत्थर मारेगा, वह अगर सोचता हो कि वह महावीर का प्रेमी है, तो वह पागल है, वह नासमझ है। महावीर के प्रेम की पहली शर्त यह है कि जब तुम्हें कोई पत्थर मारे तो तुम उसे प्रेम देना। महावीर के प्रेम की पहली शर्त यह है कि जब तुम्हें कोई पत्थर मारे तो तुम उसे प्रेम देना। 74
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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