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________________ साधन तो ध्यान है, साधन तो समाधि है, साधन तो योग है। साधन वे नहीं हैं, वे तो साधना के परिणाम हैं। वे तो जब आत्म-अनुभव होगा, तो उस अनुभूति के फूल हैं। उनसे पहचाना जाएगा कि ज्ञान उपलब्ध हुआ या नहीं। उनसे ज्ञान पाया नहीं जाता है। महावीर ने कहा है, अहिंसा ज्ञान का फल है। इस वाक्य को कोई विचार नहीं करता! महावीर कहते, अहिंसा ज्ञान का फल है। अगर ज्ञान का फल है तो ज्ञान पहले होगा कि अहिंसा पहले होगी? आगम कहते. पढमं नाणं तओ दया। पहले जान है. फिर दया. फिर अहिंसा है। महावीर कहते हैं, जो ज्ञान को उपलब्ध हो, वह आचरण को उपलब्ध है। जो ज्ञान को नहीं उपलब्ध है, उसका सब आचरण मिथ्या है। ये स्पष्ट सूत्र हैं। जो अगर थोड़े विचार किए जाएं तो यह दिखाई पड़ेगा कि महावीर की साधना नैतिक साधना नहीं है, आत्मिक साधना है। अहिंसा को, सत्य को, ब्रह्मचर्य को साधना नीति है। ___ आज दुनिया में जो भ्रम पैदा हुआ है, वह यही भ्रम पैदा हुआ है कि नीति को साधो, तो धर्म मिल जाएगा। मैं ऐसा नहीं मानता। मैं मानता हूं, धर्म को साधो तो नीति मिल जाएगी। जो नीति को साधेगा, वह धर्म को तो नहीं पा सकता। वह नीति को साध कर केवल एक अहंकार को भर उपलब्ध हो सकता है। मैं सत्यवादी हूं, मैं ब्रह्मचारी हूं, मैं त्यागी हूं, मैं साधु हूं, मैं मुनि हूं, ऐसे किसी दंभ को भला उपलब्ध हो जाए, लेकिन उस परम शांति को उपलब्ध नहीं होगा जहां दंभ का कोई निशान भी नहीं पाया जाता है। नैतिक साधना अहंकार को परिपुष्ट करती है, आत्मिक साधना अहंकार को विसर्जित करती है। इसीलिए नैतिक लोगों में एक छिपे हुए अहंकार का बोध आपको निरंतर होगा। उस तरह के साधु में एक प्रसुप्त दंभ का बोध आपको निरंतर होगा। उस तरह के साधु में एक छिपे हुए क्रोध का आपको निरंतर बोध होगा। उन ऋषियों को हम जानते हैं, जो क्रोध से लोगों को अभिशाप दे दें। वह क्रोध उनमें कहां से है? क्योंकि जो अभिशाप दे सकता है, उसमें अत्यंत प्रज्वलित क्रोध होना चाहिए। वह क्रोध उनमें इसीलिए है कि उनकी साधना आत्मिक नहीं, केवल नैतिक है। नैतिक साधना के परिणाम में धर्म नहीं आता, यद्यपि धार्मिक साधना के परिणाम में नीति अवश्य आ जाती है। नैतिक साधना पुण्य की साधना है। धर्म की साधना पुण्य की साधना नहीं है, शुद्धि की साधना है। शुद्धि-पुण्य और पाप से पृथक है। न तो पुण्य पकड़ता है, न पाप जहां पकड़ता है, जहां पुण्य और पाप दोनों पृथक और मैं अनुभव करता हूं कि मैं दोनों से मुक्त और शुद्ध हूं, उस अनुभूति में धर्म का जन्म होता है। धर्म की साधना शुद्धि की साधना है। नीति की साधना पुण्य की साधना है। नीति की साधना केवल नैतिकता तक ले जा सकती है। धर्म की साधना मुक्ति तक ले जाती है। नैतिक धार्मिक नहीं हो पाता, लेकिन धार्मिक तो अनजाने, अनायास नैतिक हो जाता है। ___ महावीर कोई नैतिक पुरुष नहीं हैं। बड़े से बड़े लोगों को मैं देखता हूं, वे लिखते हैं कि महावीर बड़े नैतिक पुरुष हैं। महावीर नैतिक पुरुष नहीं हैं, महावीर आत्मज्ञ हैं। महावीर आत्मा को उपलब्ध पुरुष हैं। नीति तो उसका परिणाम है सहज, अपने आप आ जाती है, उसे लाना नहीं पड़ता। 49
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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