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________________ ___ तो महावीर जो छोड़े बाहर, वह मूल्यवान नहीं है। जो भीतर छोड़ा, जो कंधे से उतारा, वह मूल्यवान है। वह कैसे कंधे से उतारा, वही उनकी साधना, वही बारह वर्ष की तपश्चर्या में वे कर रहे हैं। मैं सुनता हूं उनकी तपश्चर्या के बाबत प्रवचन, ग्रंथ देखता हूं, तो मुझे बड़ी हैरानी होती है। उस तपश्चर्या में लोग वर्णन करते हैं, उन्होंने कितने धूप-ताप सहे, उन्होंने कितने दिन भूखे रहे, उन्होंने किस-किस तरह वस्त्र त्याग कर नग्न रहे। उनको किस-किस तरह की पीड़ा और परेशानी आई! किस-किस तरह लोगों ने सताया और वे कुछ नहीं बोले, इसका लोग वर्णन करते हैं! इसका साधना से कोई संबंध नहीं है। यह नहीं है असली बात। असली बात यह नहीं कि महावीर के बाहर क्या नाटक घटित हो रहा है, असली बात यह है कि महावीर के भीतर क्या हो रहा है। इन बारह वर्षों में महावीर धूप में खड़े हैं या सर्दी में, यह तो शरीर खड़ा है। यह सवाल नहीं है, सवाल यह है कि महावीर का चित्त कहां है! महावीर जब धूप में खड़े हैं या भूखे खड़े हैं या उपवासे खड़े हैं, यह सवाल नहीं है-महावीर का चित्त कहां है! अगर महावीर उपवासे खड़े हैं और चित्त भोजन में हो, तो सब उपवास तो व्यर्थ हो जाएगा। अगर महावीर धूप में खड़े हैं और चित्त छाया में कहीं हो, तो धूप में खड़ा होना तो व्यर्थ हो जाएगा। महावीर कहां खड़े हैं, यह सवाल नहीं है— महावीर का चित्त कहां है। महावीर क्या कर रहे हैं, यह सवाल नहीं है-महावीर का चित्त क्या कर रहा है! हमारा चित्त कुछ न कुछ कर रहा है, कुछ न कुछ कर रहा है! महावीर की साधना इस बात की है कि चित्त ऐसी स्थिति में पहुंचे, जहां वह कुछ भी नहीं कर रहा है। क्योंकि चित्त कुछ भी करेगा, सब करना संसार को खड़ा करना होगा। क्योंकि चित्त कुछ भी करेगा, तो सिवाय चित्रों के बनाने के और कछ भी नहीं कर सकता है। चित्त का एक ही काम है। चित्त जो है. चित्रकार है। मेरी समझ जो है, चित्त चित्रकार है। उसका एक ही काम है कि वह चित्र बना सकता है। और कोई काम नहीं कर सकता। और उन्हीं चित्रों के संसार में उलझा सकता है और कोई काम नहीं कर सकता। चित्र और स्वप्न खड़ा करना, स्वप्न को सृजन करना, चित्त का काम है। तो चित्त जब तक काम करेगा, तब तक वह स्वप्न और चित्र खड़े करेगा और उनमें उलझ जाएगा। संसार को बनाएगा। संसार को भगवान नहीं बनाता, संसार को चित्त बनाता है। स्मरण रखें, संसार को भगवान नहीं बनाता, संसार को चित्त बनाता है। तो चित्त जब तक सक्रिय है, तब तक संसार है। चित्त निष्क्रिय हो गया, संसार के आप बाहर हो गए। चित्त सक्रिय है तो बंधन है; चित्त निष्क्रिय हो गया तो मोक्ष में हो गए। तो महावीर चित्त को ऐसी स्थिति में ले जा रहे हैं, जहां उसकी सक्रियता क्षीण से क्षीण होकर विलीन हो जाए, जहां सक्रियता शिथिल होते-होते, होते-होते शून्य हो जाए। साधना है चित्त को शिथिल करने की और सिद्धि है चित्त के शून्य हो जाने की। ध्यान है चित्त को शिथिल करना, निष्क्रिय करना। और समाधि है चित्त का निष्क्रिय और शून्य हो जाना। महावीर की साधना चित्त को शिथिल करने की और उपलब्धि चित्त को शून्य करने की है। चित्त सक्रिय है, तो मैंने कहा, संसार बनता है। और उसी संसार, उन्हीं प्रतिबिंबों में हम खोए-खोए उसे भूल जाते हैं, जो हम हैं। वह जो भीतर है, उसका विस्मरण हो जाता है।
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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