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________________ खोज रहे हैं बिना इस बात को पूछे कि खोया कहां है ! और जब तक हम यह न पूछें कि खोया कहां है, तब तक खोज सार्थक नहीं हो सकती है, मिलना नहीं हो सकता है। यह पूछ लें कि खोया कहां है । और इसके पहले कि दूसरे के घर में खोजने जाइए, बेहतर है अपने घर में खोज लें। इसके पहले कि दूसरे से पूछने जाइए, इसके पहले कि इस विस्तृत जमीन पर खोजने निकलिए, क्या यह योग्य और उचित नहीं है कि अपने घर में पहले तलाश कर लें ! वहां न मिले तो फिर दुनिया में खोजने जाएं। हम अजीब लोग हैं, हम दुनिया में खोजेंगे, और जब दुनिया में नहीं मिलेगा तो अपने में खोजेंगे ! दुनिया बहुत बड़ी है और जीवन बहुत छोटा है। अनंत अनंत जीवन भी बाहर खोज कर, दुनिया का अंत नहीं होगा। हमारे अनंत जीवन नष्ट हो जाएंगे। क्या यह बात सीधी सी गणित की नहीं है कि इसके पहले कि मैं इस विराट दुनिया में खोजने जाऊं, इस छोटे से अपने घर में खोज लूं ! अगर वहां न मिले, तो फिर खोजने निकल जाऊंगा। महावीर इसी चिंतन से अपने भीतर खोजने गए। नहीं दुनिया में खोजा । सोचा पहले अपने भीतर जान लें, अगर वहां हो तो ठीक, नहीं तो फिर और कहीं चले जाएंगे। और जिन लोगों ने भी इस चिंतन का उपयोग किया और अपने भीतर खोजा, उनमें से कोई फिर बाहर खोजने नहीं गया। आज तक ऐसा नहीं हुआ, किसी ने भीतर खोजा हो और फिर बाहर खोजने गया हो। ऐसा आज तक हमेशा हुआ कि जिन्होंने बाहर खोजा, वे एक न एक दिन भीतर खोजने गए। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि जिसने भीतर खोजा हो, वह फिर बाहर भी खोजने गया हो। मैं फिर से कहूं, ऐसा हमेशा हुआ है कि जिन्होंने बाहर बहुत खोजा, एक दिन उन्हें भीतर खोजने जाना पड़ा। ऐसा आज तक नहीं हुआ कि जिन्होंने भीतर खोजा हो, वे फिर कभी बाहर खोजने गए हों । निरपवाद रूप से जिन्होंने भीतर झांका, उन्होंने पा लिया । भीतर कुछ है। भीतर कुछ अदभुत विराजमान है। भीतर कुछ हमारा स्वरूप है । और मैं आपको कहूं, सच तो यह है, सच यह है कि कभी अपने जीवन को भी विचार करें, तो सत्य के प्रति अंतर- झलकें मिलनी शुरू हो जाएंगी। मैं आपसे पूछूं, आप दुख चाहते क्यों नहीं हैं? आप आनंद क्यों चाहते हैं? एक सीधा प्रश्न पूछूं, आप दुख क्यों नहीं चाहते हैं ? इस जमीन पर कोई भी दुख क्यों नहीं चाहता है? महावीर ने कहा है, कोई भी दुख नहीं चाहता । क्यों नहीं चाहता लेकिन, कभी यह पूछा ? हम भी दुख नहीं चाहते, मैं भी दुख नहीं चाहता, लेकिन क्यों दुख नहीं चाहता ? बड़ी अजीब बात है, हम जीवन भर दुख नहीं चाहते, लेकिन यह नहीं पूछते कि हम क्यों दुख नहीं चाहते ? अगर यह पूछें तो एक अदभुत उत्तर आपको ज्ञात होगा । अगर आप दुख नहीं चाहते हैं तो इसका अर्थ हुआ कि दुख विजातीय है, दुख फारेन है। आपके स्वरूप के विपरीत है, इसलिए नहीं चाहते हैं। यानी स्वरूप कहीं न कहीं आनंद होगा, इसलिए दुख को नहीं चाहते हैं । अन्यथा दुख को 'न चाह' पैदा नहीं होती । दुख को न चाहने का अर्थ है भीतर कहीं आपका स्वरूप आनंद है, इसलिए दुख को नहीं चाहते हैं। सच तो यह है, अगर आपका स्वरूप दुख होता, तो दुख का आपको पता भी नहीं चल सकता था। अगर मेरा स्वरूप दुख होता तो मुझे दुख का पता नहीं चल सकता था। बल्कि जब दुख आता, 42
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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