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________________ विचार मात्र नहीं है, यह अनुभूति है । इसे करोड़ - करोड़ लोगों ने जाना है । इस भांति अपने आवरण उघाड़ कर उस सच्चिदानंद को अनुभव किया है। उसकी अनुभूति को दूसरे लोग न भी देख सके हों, तो भी अनुभूति से फैली हुई सुगंध को दूसरे लोगों ने भी अनुभव किया है। महावीर को देख कर लाखों लोगों को अनुभव होता है : कुछ हो गया है इस आदमी में, जो हममें नहीं हुआ है। कोई आनंद इसमें प्रकीर्ण हो गया है, कोई शांति इसमें घनीभूत हो गई है । यह किसी दूसरे तल पर, किसी दूसरे डाइमेन्शन में, किसी दूसरे आयाम में, किसी दूसरे आकाश का प्राणी हो गया है। उसकी सुगंध, उसका संगीत, उसके जीवन से फैलती हुई किरणें अनेक को अनुभव हुई हैं। उसके सत्य को तो नहीं अनुभव किया जा सकता, लेकिन उसकी सुगंध को अनुभव किया गया है। इस जमीन पर अब तक जब भी किसी ने आनंद पाया है, अपने से बाहर नहीं, भीतर मैं एक छोटी सी कहानी पढ़ता था, एक बड़ी मीठी कहानी पढ़ता था । पाया है। एक सूफी फकीर स्त्री हुई। वह अपने घर के भीतर कपड़े सीती थी । उसकी सुई गिर गई। सांझ थी, अंधेरा घना हो गया, घर में प्रकाश न था, गरीब थी । वह सुई को खोजती हुई बाहर दहलान में आ गई। वहां थोड़ा-थोड़ा प्रकाश पड़ता था। सूरज आखिरी डूब रहा था । वहां खोजा, लेकिन तब तक सूरज डूब गया । तो वह बाहर सड़क पर आ गई। वहां अब भी थोड़ी रोशनी थी। करीब के पड़ोसियों ने पूछा, क्या गुम गया है? उसने कहा, मेरी सुई गुम गई है। उन्होंने पूछा, यह पता चले कि वह कहां गुम गई है, तो हम उसे ढूंढें। तो उस बूढ़ी स्त्री ने कहा, यह मत पूछो, मेरे दुख को मत छेड़ो, मेरे घाव को मत छुओ । यह मत पूछो कहां गुमी है। खोजो, मिल जाए तो ठीक। वे लोग बोले, यह बड़ा कठिन है; सुई है छोटी, और यह पता न हो कि कहां गुमी है तो कहां खोजा जा सकता है? उस स्त्री ने कहा, बड़ी तकलीफ है। सुई जहां गुमी है, वहां प्रकाश नहीं है, और जहां प्रकाश है, वहां सुई नहीं मी है। मेरी सुई भीतर गुमी है, लेकिन वहां प्रकाश नहीं । यहां प्रकाश है, इसलिए यहां खोजती हूं, क्योंकि प्रकाश में खोजा जा सकता है। मनुष्य के साथ भी वही घटना है, वही दुर्घटना है। हमारी आंखें बाहर खुलती हैं । हमारे हाथ बाहर फैलते हैं। हमारे कान बाहर सुनते हैं । हमारी समस्त इंद्रियों का प्रकाश बाहर पड़ता है। इसलिए हम बाहर खोज रहे हैं। लेकिन कभी यह पूछा कि गुमा कहां है? किसको खोज रहे हैं? उनको अज्ञानी नहीं कहेंगे अगर वे खोज रहे हैं बिना पूछे कि गुमा कहां है ! हम सारे लोग आनंद को खोज रहे हैं बिना यह पूछे कि गुमा कहां है ! हम सारे लोग आनंद को खोज रहे हैं ! इस जगत में और कोई कुछ भी नहीं खोज रहा है। कोई कुछ भी खोज रहा हो, मूलतः आनंद को खोज रहा है। लेकिन बिना यह पूछे कि यह आनंद गुमा कहां है ? जिसकी तलाश है उसे खोया कहां है ? निश्चित ही, अगर उसे खोया न हो तो तलाश नहीं हो सकती, क्योंकि उससे परिचय ही नहीं हो सकता। मैं आपको कहूं, हम आनंद की तलाश कर रहे हैं, यह इस बात की सूचना है कि हम आनंद को खोए हैं। क्योंकि जिसको खोया न हो, उसकी तलाश नहीं हो सकती । जिससे परिचय न हो, जिसकी कहीं स्मृति न हो, उसको खोजा नहीं जा सकता। सारे लोग आनंद को 41
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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