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________________ जोड ने, पश्चिम के एक बहुत बड़े विचारक ने लिखा है, मैं सुनता हूं कि पूरब के लोग कहते हैं, प्रत्येक के भीतर परमात्मा है! मैं अपने भीतर झांकता हूं तो सिवाय पशु के किसी को भी नहीं पाता हूं। ___ फ्रायड ने भी वही अनुभव लिए हैं, वही निष्कर्ष लिए हैं कि मनुष्य के भीतर पशु के सिवाय और कोई भी नहीं है। अभी जितना काम हो रहा है मन के ऊपर, उसका अनुभव यह है कि आप बहुत धोखे में हैं, मन में कोई परमात्मा जैसी चीज नहीं है। वहां परमात्मा की झलक भी नहीं है। अगर आप आधा घंटा अपने चित्त में चलते हुए चेतन-अचेतन विचारों की पर्तों को निरखें, उनका निरीक्षण करें, उनका ऑब्जर्वेशन करें, तो बहुत घबड़ा जाएंगे, बहुत तिलमिला जाएंगे, बहुत डर मालूम पड़ेगा, बहुत नरक मालूम पड़ेगा कि यह मेरे भीतर क्या है! यही मैं हूं! यही मेरा होना है! यही मेरी सत्ता है! बहुत घबड़ाहट मालूम होगी और उसी घबड़ाहट के कारण हममें से कोई भीतर जाना नहीं चाहता है। लाख कोई कहे, अपने को जानो! अपने को हम जानना नहीं चाहते, हम अपने को जानने से बचना चाहते हैं। हम चौबीस घंटे ऐसे उपाय कर रहे हैं कि अपने से कहीं मिलना न हो जाए, कहीं एनकाउंटर न हो जाए, मुलाकात न हो जाए। हम उसको भुलाने के हर उपाय कर रहे हैं। हमारे मनोरंजन, हमारी हंसी-खुशी, हमारे आमोद-प्रमोद उसको भुलाने के हैं। हमारे नशे उसको भुलाने के हैं। संगीत में, सेक्स में, शराब में हम उसको भुलाने की कोशिश कर रहे हैं, कि कहीं उस भीतर में देखना न पड़े कि वहां कौन है। जब तक जागते हैं, भुलाए रखते हैं। फिर सो जाते हैं, फिर उठते हैं, फिर लग जाते हैं! खाली अगर आपको छोड़ दें, आप बहुत तिलमिलाएंगे, बहुत घबड़ाएंगे। यह बड़ी अजीब सी बात है। अगर एक महीने आपको कोई पलायन का, एस्केप का अपने से मौका न दिया जाए, आप पागल हो जाएंगे। एक ऐसी घटना हुई। इजिप्त में एक बादशाह हुआ। एक फकीर ने उस बादशाह से कहा कि तुम सोचते हो कि तुम बहुत समझदार हो! तुम बड़े अज्ञानी हो। तुम सोचते हो कि आत्म-ज्ञान की बातें करते हो! तुम अपने भीतर जाने से डरते हो। उस फकीर ने कहा, अगर एक महीना हम तुम्हें बंद कर दें-जो मैंने आपसे कहा-आप एक महीने में पागल हो जाओगे। अगर आपको मौका न दें अपने से बाहर भागने का. किन्हीं कामों में अपने को आक्यूपाइड कर लेने का, व्यस्त कर लेने का, उलझा लेने का, और आपको बार-बार अपने ही अपने को देखना पड़े, आप विक्षिप्त हो जाओगे। बादशाह बोला, अजीब सी बात है। मैं प्रयोग करके देखूगा। एक भला-चंगा आदमी, जो उसके द्वार से रोज निकलता था खुश सांझ को काम करके। भरा-पूरा परिवार था, पत्नी थी, बच्चे थे, खुश नजर आता था। सुबह दफ्तर जाना, सांझ लौट आना। तो उसने एक सांझ को उस खुश लौटते आदमी को मार्ग से पकड़वा कर बुलवा लिया। उससे कहा कि तुम्हें महीने भर हम बंद करते हैं। कोई कसर नहीं है, एक प्रयोग के लिए बंद करते हैं। उसके घर खबर पहुंचा दी कि हमने आपके पति को–उसकी पत्नी को कहलाया-बंद कर दिया है; घबड़ाना मत, सब खर्च मिलेगा राज्य से और महीने भर बाद उसे छोड़ देंगे। उस आदमी को महीने भर बंद रखा। 38
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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