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________________ यह बात प्राथमिक रूप से आपसे कहूं। और इसलिए यह बात कहना चाहता हूं, ताकि आपको समझ में आ सके कि महावीर का कोई संप्रदाय नहीं हो सकता है। कोई समाज नहीं हो सकता, कोई पंथ नहीं हो सकता। जो भी आनंद को खोजता है, वह सब महावीर के संप्रदाय में है: सब महावीर के पंथ में है। अभी मैं एक जगह था। किसी ने मुझसे कहा-एक जैन साधु ने मुझसे कहा कि जैन धर्म के अतिरिक्त, जैन होने के सिवाय मोक्ष होने का कोई रास्ता नहीं है। मैंने उनसे कहा, ऐसा मत कहें। मैंने उनसे कहा, ऐसा मत कहें कि जैन धर्म के अतिरिक्त मोक्ष जाने का कोई रास्ता नहीं है। बल्कि ऐसा कहें कि जो भी कहीं से भी मोक्ष चला जाए, वह जैन है। मैंने उनसे कहा, ऐसा कहें, जो कहीं से भी मोक्ष चला जाए, वह जैन है। यह मत कहें कि जो जैन है, वही मोक्ष जा सकता है। यह कहें कि जो भी मोक्ष चला जाता है, वह जैन है। __ और अगर दूसरी बात मेरी आपको ठीक लगे तो इस जमीन पर जितने लोग मोक्ष को उपलब्ध हुए हों, वे सब महावीर के पंथ में हैं, महावीर के साथ हैं। और तब महावीर एक विराट पुरुष की तरह दिखाई पड़ेंगे, एक सीमित दायरे के भीतर बंधे हुए नहीं। एक ही मेरी आकांक्षा है कि महावीर जैनियों से मुक्त हो सकें, ताकि उनका संदेश, और उनका खयाल, और उनकी जीवन-चर्या सबके काम में आ सके। जिन कुओं पर किन्हीं का कब्जा हो जाता है, उनका जल सबके पीने के मतलब का नहीं रह जाता। और जिन कुओं पर किन्हीं का कब्जा हो जाता है, उन कुओं का पानी सबकी प्यास को बुझा नहीं पाता। कुओं को तोड़ दें और दीवालों को हटा लें और महावीर को बांधे नहीं, तो आप हैरान हो जाएंगे कि उनकी जो अंतर्दृष्टि है, वह सारे मनुष्य के स्वास्थ्य की मूल चिकित्सा बन सकती है। महावीर की जो अंतर्दृष्टि है, बहुत गहरी, बहुत पैनी है। और मनुष्य के जो भी रोग हैं, उनको दूर करने में समर्थ है। उस पैनी अंतर्दृष्टि के क्या बुनियादी आधार हैं, वह मैं आपसे कहूं। महावीर की जो अंतर्दृष्टि है मनुष्य की समस्त रुग्णता के भीतर, मनुष्य की समस्त विक्षिप्तता के भीतर, मनुष्य के सारे जितने भी जीवन के दुख, पीड़ाएं, संताप हैं, उनके भीतर महावीर की जो अंतर्दृष्टि है, वह एक बात पर खड़ी हुई है। और वह बात यह है कि हम जिन्हें दुख मानते हैं, जिन्हें पीड़ाएं मानते हैं, जिन्हें कष्ट मानते हैं, उन्हें दूर करने का उपाय करते हैं। हर मनुष्य अपने कष्ट को, अपनी पीड़ा को, अपने दुख को दूर करने का उपाय कर रहा है। हर मनष्य कर रहा है चाहे वह धन खोजता हो. यश खोजता हो. पद खोजता हो. प्रतिष्ठा खोजता हो-वह अपने दुख को दूर करने का उपाय कर रहा है। महावीर की अंतर्दृष्टि यह है कि जो दुख को दूर करने का उपाय कर रहा है बिना यह जाने कि दुख क्या है, नासमझ है, वह दुख को कभी दूर नहीं कर पाएगा। जो दुख को दूर करने का उपाय कर रहा है बिना यह समझे कि दुख क्या है और किसे है, वह नासमझ है और दुख को कभी दूर नहीं कर पाएगा। एक दुख को दूर करेगा, दूसरा दुख घेर लेगा, क्योंकि मूल कारण मौजूद रहेगा। मेरे पैर में दर्द हो, मैं उसको दूर करूंगा, पैर ठीक हो जाएगा। फिर कल मेरे सिर में दर्द होगा, उसे दूर करूंगा और सिर ठीक हो जाएगा। दुख तो दूर होते जाएंगे, लेकिन दुख दूर नहीं होगा, दुख पीछे लगा रहेगा। एक दुख दूर होगा, दूसरे दुख मौजूद होंगे, क्योंकि मूल कारण विलीन नहीं होगा। 22
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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