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________________ सत्य भी आनंद की तलाश का साधन मात्र है। इसलिए महावीर के संबंध में पहली बात जो मुझे आज कहने का मन है, वह यह है कि उन्हें सत्य के खोजी की तरह न देखें, उन्हें आनंद के खोजी की तरह देखें। वे आनंद की खोज करने वाले साधक हैं। और इसीलिए उनकी सारी चर्या, उनका सारा विचार, उनका सारा जीवन मोक्ष पर केंद्रित है। आनंद और मोक्ष एक ही चीज के दो नाम हैं। दुख क्या है? दुख सीमा है, दुख परतंत्रता है, दुख बंधन है। और आनंद? आनंद स्वतंत्रता होगी, बंधन-मुक्ति होगी, सीमाओं का टूट जाना होगा। परिपूर्ण आनंद ही परिपूर्ण मुक्ति की अवस्था होगी। मोक्ष में और पूर्ण आनंद में कोई भेद नहीं होगा। जो पूर्ण आनंद को उपलब्ध है, वह मुक्त होगा। जो मुक्त है, वह पूर्ण आनंद को उपलब्ध होगा। इसलिए पश्चिम के मुल्क के विचारक सोचते हैं, सत्य क्या है ? भारत के साधक सोचते हैं, मुक्ति क्या है? मोक्ष क्या है? मोक्ष का उपाय क्या है? दर्शन और धर्म में यहीं भेद है। दार्शनिक सोचता है, सत्य क्या है? धार्मिक सोचता है, मोक्ष क्या है? अगर आप पश्चिम के विचारकों को पढ़ेंगे तो आप पाएंगे, मोक्ष का कोई विचार ही नहीं करते हैं, मोक्ष का कोई खयाल नहीं करते। उनके ग्रंथों में मोक्ष के संबंध में कोई चर्चा नहीं मिलेगी। और अगर आप भारत के ग्रंथों को खोजेंगे और देखेंगे तो पाएंगे कि सिवाय मोक्ष के हम कुछ भी नहीं खोज रहे हैं। बुद्ध एक गांव से निकलते थे, और एक व्यक्ति वहां गिर पड़ा था। जंगल में वह जाता था और किसी का तीर उसे लग गया। बुद्ध उसके करीब से निकले और उन्होंने उस आदमी को कहा, इस तीर को निकाल लेने दें। उस व्यक्ति ने कहा, पहले मुझे यह बताएं, तीर किसने मारा है? पहले मुझे यह बताएं कि यह तीर विष-बुझा था या गैर-विष का था? पहले मुझे यह बताएं कि मारने वाला मित्र था, कि शत्रु था, कि अनजान में उसने मार दिया? बुद्ध ने कहा, ये बातें बाद में पूछ लेना। पहले तीर को निकाल लेने दो। कहीं ऐसा न हो कि हम बातें करते रहें और तुम्हारे प्राण समाप्त हो जाएं! बुद्ध ने कहा, तीर को पहले निकाल लेने दो, फिर बाद में हम विचार कर लेंगे कि तीर किसने मारा। कहीं ऐसा न हो कि हम विचार करते रहें और तुम्हारे प्राण समाप्त हो जाएं! ___महावीर, बुद्ध, कृष्ण या क्राइस्ट यही कह रहे हैं; हमारे हृदय में जो तीर लगा है दुख का, उसे हम पहले निकाल लें, फिर बाद में हम सत्य के संबंध में विचार करते रहेंगे। कहीं ऐसा न हो कि हम सत्य के संबंध में विचार करते रहें और प्राण समाप्त हो जाएं। इसलिए भारत की पूरी खोज सत्य के लिए नहीं है, मोक्ष के लिए है। भारत की खोज तीर किसने मारा है, इसको जानने के लिए नहीं है; भारत की खोज इसके लिए है कि तीर कैसे निकल जाए। तो महावीर को आनंद की खोज, मोक्ष की खोज केंद्रीय है। सत्य क्या है, इसकी खोज केंद्रीय नहीं है, गौण है। जो लोग उन्हें एक तत्व-चिंतक की भांति ले लेंगे, वे भूल में पड़ जाएंगे। और हमने महावीर को तत्व-चिंतक की भांति ले लिया है। वह हमने भूल कर ली है। 21
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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