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________________ दूर ही बस्ती मिल जाएगी। वह आदमी बाएं तरफ मुड़ा और थोड़ी दूर जाकर उसने देखा वहां कब्रिस्तान है! वह बहुत गुस्से में वापस आया और उसने लौट कर उस फकीर को कहा, आप पागल मालूम होते हैं। वहां बस्ती नहीं, कब्रिस्तान है। उसने कहा, और अगर कब्रिस्तान जानना चाहते हो तो अब इस तरफ चले जाओ, दाएं तरफ। वहां गया, वहां बस्ती थी। वह सांझ को लौटा और उसने कहा, आप पहेलियां बुझाते हैं। उस फकीर ने कहा, हमने तो जैसा जाना, वैसा कहते हैं। वहां जो बसे हैं कब्रिस्तान में, सदा को बस गए हैं। और यहां जो बसे मालूम होते हैं, वे सब कब्रिस्तान के रास्ते पर हैं, वे सब कब्रों के भीतर जाने की तैयारी में हैं। इसलिए अगर बस्ती को देखना है तो उधर देखो, अगर कब्रिस्तान को देखना है तो इधर देखो। और यह सच है। हम हंस रहे हैं, क्योंकि हमें लग रहा है यह फकीर ने किसी और से कहा था। यह फकीर आपसे ही कह रहा है। जो हंस रहे हैं, उनसे ही कह रहा है। यह किसी और से कही हुई बात नहीं है। यह आपसे कही गई है। और आप देखें, यहां बैठे हुए देखें आप चारों तरफ। अगर आपकी थोड़ी आंख गहरी हो तो आप यहां मुर्दो को इकट्ठा हुआ पाएंगे। यहां सब मुर्दे हैं, तिथियां अलग-अलग हैं। यहां सब मुर्दे हैं। मुर्दे होने के सबके शिड्यूल, टाइम अलग-अलग हैं, बाकी सब मुर्दे हैं। अगर जीवन को चारों तरफ हम देखें तो मृत्यु दिखाई पड़ेगी; दुख, पीड़ा दिखाई पड़ेगी। कुछ सार नहीं दिखाई पड़ेगा, असार दिखाई पड़ेगा। कुछ अर्थ नहीं दिखाई पड़ेगा, सब अनर्थ दिखाई पड़ेगा, व्यर्थ दिखाई पड़ेगा। उस बोध से प्यास पैदा होगी। उस बोध से लगेगा, अगर यह सब असार है, अगर यह सब व्यर्थ है, तो सार क्या है ? अर्थ क्या है ? अगर यह सब व्यर्थ है तो सार्थक क्या है? और तब भीतर एक आकांक्षा सरकेगी, एक लपट पैदा होगी, और वह लपट आपको धर्म की तरफ ले जाएगी। वह लपट प्रत्येक व्यक्ति के भीतर पैदा हो, यही मेरी कामना है। वह लपट बहुत दुख देगी। वह लपट बहुत चिंता पैदा करेगी। वह लपट आपकी सारी शांति को खंडित कर देगी। वह लपट आपके सारे संतोष को छीन लेगी। वह लपट आपकी नींद को छीन लेगी। वह आपको बेचैन कर देगी। और ईश्वर करे कि वैसी बेचैनी आपके भीतर पैदा हो जाए। और ईश्वर करे, आपकी सारी झूठी शांति खंडित हो जाए, आप अशांत हो जाएं। और ईश्वर करे, आपके सारे संतोष के ढकोसले समाप्त हो जाएं और आप इतने असंतुष्ट हो जाएं कि आपको कोई कूल-किनारा न दिखाई पड़े। जिस दिन मनुष्य को इस जगत में कोई कूल-किनारा नहीं दिखाई पड़ता, जिस दिन मनुष्य को इस जगत में कोई सहारा और आधार नहीं दिखाई पड़ता, उस दिन वह पहली दफा भगवान के आधार को उपलब्ध होता है। जिसके जगत में सब आधार और शांतियां छिन जाती हैं, उसे धर्म की शरण पहली दफा उपलब्ध होती है। धर्म की शरण जाना हो, जगत की शरण से मुक्त हो जाना जरूरी है। उससे प्यास...उससे प्यास पैदा होगी। ___और आज के इस पुनीत पर्व पर और इससे बेहतर मैं और कुछ नहीं प्रार्थना कर सकता। और मेरे हृदय में कोई बात उठती नहीं मालूम पड़ती और कोई कामना नहीं मालूम पड़ती, और 15
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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