SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनाम रहस्यदर्शी तारण तरण पर ओशो द्वारा 22 वर्ष की उम्र में लिखा गया एक लेख संत तारण तरण का यथार्थ नाम क्या था, यह अज्ञात है, लगता है कि जैसे 'अनाम' के चिंतन में वे धीरे-धीरे अनाम ही हो रहे थे। उनके अनुयायी उन्हें जगत के तारणहार मानने के कारण 'तारण तरण' कहने लगे हैं। अपने ग्रंथों में उन्होंने स्वयं अपने यथार्थ नाम का कोई उल्लेख नहीं किया है। आत्म-स्वरूप में वे इतने विलीन मालूम होते हैं कि शरीर का बोध उन्हें मिट गया है। शरीर ही पृथक करता है। वे निश्चय ही उसके ऊपर हो आए थे और ज्ञानाग्नि में व्यक्तिगत अहंता जल कर राख हो गई थी। इस अव्यक्तिगत चेतनास्तर से उठे हुए स्वर सत्यसाक्षात की गवाही देते हैं। उनसे आकर भी शब्द जैसे उनसे नहीं आए हैं। उनकी वाणी में, व्यक्ति-भेद के पार जो अभेद सत्-चित्-आनंद की शुद्ध सत्ता है, उसका प्रतिबिंब इतना स्पष्ट है कि प्रतीत होता है कि जैसे वे सत्य के आमने-सामने खड़े होकर ही बोल रहे हैं। तारण तरण का जन्म अगहन सदी सप्तमी संवत 1505 में बंदेलखंड जनपद के पुष्पावती ग्राम में हुआ। उनके पिताश्री का नाम गढ़ासाहु और माताश्री का नाम वीरश्री देवी बताया जाता है। संत तारण तरण जैन परिवार में जन्मे और उन्होंने वही कार्य जैन परंपरा से किया जो कबीर, नानक और दादू ने हिंदू जीवन-व्यवस्था के अंतर्गत किया है। संत तारण तरण को निश्चय ही जैन परंपरा का कबीर कहा जा सकता है। संत तारण तरण का युग ही क्रांति का युग था। देश की हवा के कण-कण में धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक नवोत्कर्ष की आग थी। एक अरसे से निद्रा में सोया समाज जाग रहा था। जीवन-सत्य के साक्षात के लिए भूले-भटके पथों को फिर से खोजा जा रहा था और देश के कोने-कोने में छोटे-बड़े सैकड़ों ईश्वर-दूत अंधविश्वास के अंधेरे पर तीव्र प्रहार कर रहे थे। कबीर, रैदास, सेनानाई, रामदास, पीपा जी, धन्ना, नानक, दादू, अमरदास, शेख फरीद आदि सभी क्रांतिकारी संत थोड़े-बहुत हेर-फेर से इसी युग की उपज थे।। संत तारण तरण ने समाज में आ गई गंदगी, अंधविश्वास, जड़ता, थोथे क्रियाकांड और 208
SR No.009968
Book TitleMahavir ya Mahavinash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRajnish Foundation
Publication Year2011
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy